
सहमति पत्र के बाद भी मुकर गए किसान
फसल बीमा, सूखा राहत, समर्थन मूल्य-भावांतर का भुगतान और बोनस किसानों के खाते में आने के बाद जिस गति से कर्ज जमा करने वालों की भीड़ बढ़ रही थी, वह छह जून के बाद बेहद धीमी हो गई है। किसानों को उम्मीद जगी है कि राहुल गांधी के एलान से अब कर्ज माफ हो जाएगा इसलिए जमा क्यों करें। जो किसान इस योजना के तहत कर्ज जमा करने का सहमति पत्र भर चुके थे, वे भी जिला सहकारी बैंकों के प्रबंधकों से कह रहे हैं कि लिखकर दीजिए कि यदि कर्ज माफ हुआ तो कर्ज चुकाने के रूप में जमा किया गया हमारा पैसा वापस कर दिया जाएगा।
समझाइश हुई बेअसर
सहकारी बैंकों के प्रबंधकों के मुताबिक जिन किसानों पर बड़ा कर्ज बकाया है, वे किसान पिछले एक सप्ताह से कर्ज की रकम जमा कराने नहीं आ रहे हैं। अब बैंकों में वही किसान आ रहे हैं, जिन पर कर्ज की छोटी-मोटी रकम बकाया है। बैंक प्रबंधकों का कहना है कि किसानों को समझाने की कोशिश की जा रही है लेकिन वे मानने को ही तैयार नहीं हो रहे हैं। अपेक्स बैंक के एमडी के मुताबिक मुख्यमंत्री ने फरवरी में इस घोषणा का एलान किया था। लेकिन इस योजना को 6 अप्रैल से लागू किया गया। ऐसे में फरवरी से छह अप्रैल के बीच जो 12 हजार किसान कर्ज जमा कर चुके थे, उन्होंने भी इस योजना में खुद को शामिल करने की मांग की। सरकार ने उन लोगों की मांग मान ली।
सहकारी बैंकों की हालत खराब
इधर प्रदेश के जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की हालात खस्ता है। प्रदेश के कई बैंकों पर धारा 11 के तहत नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक) ने कई प्रतिबंध लगा दिया है। जब तक सुधार नहीं हो जाता तब तक इन्हें आर्थिक मदद भी नहीं मिलेगी। यदि यही हाल रहे तो इन बैंकों से भारतीय रिजर्व बैंक बैंकिंग कारोबार करने का लाइसेंस भी वापस ले सकता है। मध्यप्रदेश की 38 जिला सहकारी बैंकों का किसानों के ऊपर करीब 18 हजार 557 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ गया है, यदि वसूली नहीं हुई तो बैंकों में आर्थिक संकट के हालात बन सकते हैं। अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक आरके शर्मा ने बताया कि नाबार्ड ने आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए हैं। इन्हें री-फायनेंस (पुनर्वित्त) नहीं मिलेगा।
तो फिर सरकार को होगी परेशानी
सूत्रों का कहना है कि सरकार की बहुत सारी योजनाओं की सफलता सहकारी बैंकों पर निर्भर है। शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देने का काम इन्हीं के कंधों पर है। इसके लिए नाबार्ड से बड़ी मात्रा में राशि ली जाती है। यदि बैंकों की वसूली नहीं हुई और स्थिति यूं ही बनी रही तो 25 लाख किसानों को कर्ज उपलब्ध कराने का लक्ष्य पिछड़ सकता है।
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