मैटरनिटी लीव: महिला कर्मचारी को मिलती है, छात्रा को क्यों नहीं

नई दिल्ली। महिलाओं के अधिकार और सरकार की महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता के बीच एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने सरकार की सजगता पर सवाल उठा दिए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी सरकार ने महिला कर्मचारियों को मैटरनिटी लीव का अधिकार दिया है। प्राइवेट सेक्टर में भी इसे लागू किया गया है परंतु यदि कोई छात्रा गर्भवती हो जाती है तो उसे मैटरनिटी लीव का प्रावधान नहीं है। अंकिता मीना का मामला ऐसा ही है। वो यूनिवर्सिटी की तमाम अपील के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गई लेकिन उसे मैटरनिटी लीव का लाभ नहीं मिला। 

अंकिता मीना की शादी 5 मार्च 2016 को हुई थी। उसी साल अगस्त के महीने में अंकिता ने दिल्ली विश्वविद्यालय में तीन साल के लॉ कोर्स में फ़ैकेल्टी ऑफ लॉ में दाखिला लिया। पढ़ाई करते हुए चौथे सेमेस्टर में उन्होंने 22 फरवरी को 2018 को बच्चे को जन्म दिया। उनका चौथा सेमेस्टर एक जनवरी से पांच मई तक चला। प्रेग्नेंट होने की वजह से अंकिता कई क्लास में गैरहाज़िर रहीं और एक्जाम देने के लिए 70 फीसदी जरूरी उपस्थिति का नियम पूरा नहीं कर पाई।

चौथे सेमेस्टर में उनका अटेंडेंस सिर्फ 49.19% रहा। इस वजह से चौथे सेमेस्टर के एक्जाम में अंकिता को बैठने नहीं दिया गया। अंकिता ने विश्वविद्यालय के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया। लेकिन कोर्ट ने भी प्रग्नेंसी के दौरान की गैरहाजिरी की वजह से अंकिता को 'शॉर्ट अटेडेंस' में कोई रियायत नहीं दी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के नियम

दिल्ली विश्वविद्यालय के नियमों के मुताबिक शादीशुदा महिला जो 'मैटरनिटी लीव' पर है उसके लिए 'शॉर्ट अटेडेंस' तय करने के लिए नियम अलग हैं। 'मैटरनिटी लीव' के दौरान जो क्लास चले उन्हें अटेंडेंस में गिना ही नहीं जाता। उसके आलावा जितने दिन क्लास लगती है, उनमें महिला की उपस्थिति कितनी है, इस आधार पर उसकी अटेंडेंस तय की जानी चाहिए। यही तर्क अंकिता ने कोर्ट में रखा लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय ने दलील दी कि एलएलबी की डिग्री प्रोफेशनल कोर्स है। वहां नियम बार काउंसिल ऑफ इंडिया का लागू होता है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया का नियम

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के मुताबिक, 70 फीसदी से कम अडेंटेंस होने पर किसी भी छात्र को परीक्षा में बैठने का अधिकार नहीं है लेकिन किसी छात्र के पास 65 फीसदी अडेंटेंस है तो विश्वविद्यालय के डीन या प्रिंसिपल के पास इसका अधिकार होता है कि वो छात्र को परीक्षा में बैठने की इजाजत देते हैं या नहीं। हालांकि ऐसा करने देने के लिए उनके पास ठोस वजह होनी चाहिए और वजह के बारे में बार काउंसिल को भी अवगत कराना जरूरी होता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने दो पुराने मामलों का हवाला देते हुए बार काउंसिल के नियम को सही मानते हुए अंकिता को परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं दी।

क्या पढ़ती हुई लड़की को मां बनने का अधिकार नहीं है?

यही सवाल हमने महिला एंव बाल कल्याण मंत्रालय से भी पूछा। मंत्रालय के मुताबिक मेटरनिटी बेनिफिट कानून केवल कामकाजी महिलाओं के लिए लागू होता है। फिलहाल पढ़ने वाली लड़कियों के लिए इसका कोई प्रावधान नहीं है। अंकिता ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली लेकिन उन्हें वहां से भी राहत नहीं मिली।

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