बगैर साक्षात्कार सहायक प्राध्यपकों की भर्ती तो गैरकानूनी है

डॉ अनिल जैन। उच्चशिक्षा में गुणवत्ता का राग अलापने वाली शिवराज सरकार जल्दबाजी और उपताहट के चलते प्रदेश में वह करने जा रही है जो आज के पहले प्रदेश और देश के अन्य प्रदेशों में कहीं नहीं हुआ और कभी नहीं हुआ। यथासंभव और न होगा। और मेरी भावना है कि ऐसा कहीं न हो। कभी न हो। शिवराज सरकार के नौकरशाहों और प्रशासकों को भगवान सद्बु़द्धी दे। शिवराज सरकार बगैर साक्षात्कार लिये मात्र लिखित परीक्षा के आधार पर सहायक प्राध्यापकों की भर्ती करने जा रही है। जी हॉ। ये सुनकर। सोचकर। और शिवराज सरकार के केबिनेट के इस निर्णय को पढकर, सरकार की मानसिक विकलांगता और निहित स्वार्थ तथा राजनीतिक हित साधने के लिये कुत्सित कदम उठाने तथा उच्च शिक्षा के साथ दुष्कर्म जैसी दुर्गंध आने लगी है। 

इस निर्णय को केबिनेट ने मंजूरी दी ? यह आश्चर्य का विषय है? इससे समझ आता है कि नौकरशाही किस हद तक सरकार पर अपने पैर जमाये हुए है। सेक्सपीयर के इस कथन में गहरी सच्चाई है कि ’’राजनीति धूर्तो की शरण स्थली है।’’ हैरत की बात यह है कि समाज के ठेकेदार, राजनीतिक पंडित और शिक्षाविद् सहित बुद्धिजीवी इस निर्णय पर कांन और आंख तो खाले है पर जुबान पर ताला लगाये हुए है। धर्म, जाति, वर्ग संप्रदाय वाला कोई मुद्दा होता तो टीवी चैनलों पर गला फाड़ने के लिये जिम्मेदार परेड करते हुए नजर आते। चूंकी यह शिक्षा का ही नहीं उच्च शिक्षा का मामला है, चहूं ओर शांति? यह शांति समझ से परे है। सिर्फ आंदोलित है तो अतिथि विद्वान इसीलिये क्योंकि यह न केवल अपने अस्तित्व के लिये बल्कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और इसकी गरिमा बनाये रखने के लिये संकल्पित है। 

समाज, शासन और प्रशासन की असंवेदनशीलता और इस तरह की अप्रत्याशित अजबाबदेही और मोनी बाबा की तरह मौन धारण करना आगामी पीढी की लिये बहुत ही भयानक सिद्ध हो सकता है शायद इसकी किसी को परवाह नहीं। कथन है, कि विद्यार्थी शिक्षक के ज्ञान से कम उसके व्यक्तित्व और उसकी जीवंतता से ज्यादा ग्रहण करता है। उम्मीद कीजिये इस बार जो सहायक प्राध्यापक भर्ती नियुक्त होंगे बो वैकल्पिक प्रश्नों की रेश में अपने अंकों की सीढी से महाविद्यालय में विद्यार्थियों के बीच पहुंच जायेंगे लेकिन व्यक्तित्व का पहलू कमजोर होगा। हकलाने वाले, शारीरिक रूप से कुरूप, शर्मीले, झेंपू कुंठित, त्वरित निर्णय लेने में कमजोर, संप्रेषण की कला में फिसड्डी। व्याख्यात्मक विवरणात्मक शैली विहीन, आधुनिक दृव्य श्रृव्य सामिग्री से अंजान अज्ञानी, अमनोवैज्ञानिक सहित पता नहीं कितनी नकारात्मकताओं से ग्रसित होंगे। 

यह मै इसीलिये कह सकता हूॅ कि साक्षात्कार में इन्हीं सब बातों का परीक्षण किया जाता है कि जिस पद के लिये अपको चयन किया जा रहा है वह क्षमता और गुण आप में है की नही। पीएससी को मजाक बना दिया है सरकार ने। दिसंबर में प्रकाशित विज्ञापन में इन चार महिनों में आयोग उच्च शिक्षा के हवाले से इतने संशोधन कर चुका है कि उसका मूल स्वरूप ही गायब हो गया। आवेदक इस पशोपेश में कि पीएससी होगी की नहीं? क्योंकि न्यायालय में पेंच फंसा था। जिसके चलते एक बार आवेदनों की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया। इससे जो आवेदक पढाई में तल्लीन थे उनके सामने 2014 और 2016 की तरह एक बार फिर असमंजस का दृश्य सामने मंडराने लगा कि मुश्किल है अब पीएससी हो पाये। क्योंकि दो बार पीएससी का विज्ञापन रद्द किया जा चुका है। इसीलिये उन्होंने पढना ही बंद कर दिया। 

अचानक आवेदन की लिंक खोल के और परीक्षा की तिथि घोषित करके आयोग ने हैरत में डाल दिया। अतिथि विद्वान परीक्षा की तैयारी न कर पायें और पीएससी के खिलाफ आंदोलन न कर पाये इसीलिये नौकरशाहों ने महाविद्यालयों के प्राचार्यो को आदेशित कर दिया कि इन्हें नो वर्क नो पेमेंट पर रखा जाये और इनकी अनिवार्य रूप से परीक्षा ड्यूटी करायी जाये जो न करें उनकी रिपोर्ट आयुक्त को भेजी जाये ताकी इनको दंडित किया जा सके। दंडित इस रूप में कि इन्हें अगले सत्र में सेवा के लिये बुलाना है की नहीं। परीक्षा की तैयारी के लिये आयोग ने निर्धारित नब्बे दिन का भी समय देना मुनासिब नहीं समझा। सरकार और नौकरशाहों का अतिथि विद्वानों पर सुनियोजित अत्याचार और अनाचार शैतान भी रहम खाये। सरकार का तर्क है कि साक्षात्कार इसीलिये खत्म कर दिया ताकि जुलाई से शुरू हो रहे सत्र में नियुक्ति की जा सके। 

इतनी हडबड़ाहट, उपताहट, और तड़प पहले कभी नहीं देखी गयी सरकार की। 14 साल से आप राजनीति की शतरंज पर अपने सत्ता के प्राण फूंक रहे है अभी तक गैरहोश क्यों रहे? सिर्फ गुणवत्ता के नाम पर पूरे प्रदेश को सपने और कागजी घोड़े चलाते रहे? पिछले 24 साल से प्रदेश के उच्च शिक्षित युवा सहायक प्राध्यापक बनने का सपना संजोये हुए है और यह युवा इस प्रत्याशा में की उनका केरियर यहीं बनेगा इसीलिये देहाड़ी मजदूरों की भांति कम वेतन पर साल में बेमुश्किल 7-8 महिने का काम मिलने की जद्दोजहद के चलते उच्च शिक्षा को अपने ज्ञान और परिश्रम से सींचते रहे अतिथि विद्वान के रूप में। जहां इनको अवसर और इनके परिश्रम का परिणाम अब इस उम्र में मिलना चाहिये उनके साथ अन्याय और अत्याचार का तांडव सरकार क्यों खेल रही है यह प्रश्न आज पूरे प्रदेश के अतिथि विद्वानों में ज्वलंत धधक रहा है। 

पिछले 24 सालों में यदि 1-2 सालों के अंतराल से सहायक प्राध्यापकों की भर्ती सरकारों के द्वारा की गयी होती तो शायद इस प्रकार की भयावह की स्थिति नहीं बनती अतिथि विद्वान पूंछना चाहते है कि इसमें उनका दोष कहां है? सरकारें दोषी है? सरकार अपने दोष और गल्तियों का पश्चाताप् अतिथि विद्वानों से रोजगार छीनकर उन्हें रोड पर लाने का यह अपवित्र काम क्यों कर रही है। इतना ही नहीं प्रदेश में इतनी अधिक बेरोजगारी के बाद भी नौकरशाह दूसरे प्रदेश से युवाओं के भरने जैसा षडयंत्र कर सरकार को गुमराह करने का काम कर रही है। पिछले दिनों केबिनेट मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के माध्यम से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से रीवा में बंद कमरे में अतिथि विद्वानों की 15-20 मिनिट बातचीत हुई। उन्होंने दबी जुबान से स्वीकार किया की अतिथि विद्वानों के साथ अन्याय हो रहा है हम कुछ करते है। 

क्या करते है....आज तक रहस्य बना हुआ है। उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया का सत्ता दंश उस समय झलक गया जब गुना कलेक्टर की मध्यस्थता में अतिथि विद्वानों की मीटिंग करायी तो बो सदबृद्धी यज्ञ और धर्मपरिवर्तन के मुद्दे पर झल्ला गये और कहने लगे कि तुम तीन हजार हो क्या कर लोगे.? सरकार थोड़े न गिरा दोगे..? साढे तीन हजार पदो पर भर्ती कर रहे है और 20 हजार युवाओं के नुकसान न करने की दलील देते हुए नजर आये। इन्हें पता ही नहीं है कि भर्ती और अतिथि विद्वान तथा बाहरी आवेदकों का क्या गणित है। नौकरशाहों की भाषा उनपर हावी दिखायी दी। जबकी यही पवैया है जो बार बार मंच से अतिथि विद्वानों के परिश्रम से महाविद्यालयों में अच्छे परिणामों की दुहाई देते हुए और नियमित प्राध्यापकों के आलसीपन और निकम्मेपन के कसीदे कसते हुए थकते नहीं थे। 

यही पवैया जी है जिन्होंने अतिथि विद्वानों को निश्चित वेतन पर संविदा नियुक्ति के सपने दिखाये और फिर मुकर गये। और अब अयोग्य लोगों की भर्ती जैसा कुत्सित तांडव रचने का काम पूरी जिम्मेदारी से कर का दम भर रहे है। जबकी वश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों में बगैर साक्षात्कार के सहायक प्राध्यापकों की भर्ती न करने का नियम उपबंधित है। सरकार की वादा खिलाफी। सहायक प्राध्यापकों भर्ती में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के पदों में धांधली और रोस्टर का पालन न किये जाने महत्वपूर्ण विषयों पर अतिथी विद्वानों ने माननीय सक्षम न्यायालय में याचिकायें लगायी हुई है जिनके निर्णय आना बाकी है। 

इसके बावजूद भी समय रहते है सरकार ने अपनी नीति और नियत नहीं बदली और पीएससी को निरस्त नहीं किया तो प्रदेश के पॉच हजार से अधिक अतिथि विद्वान एक साथ नियत तिथि में धर्मांतरण करेंगे और कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर आगामी विधान सभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से दूर रखने अभी से चुनाव प्रचार में निकल जायेंगे। इस निर्णय पर अभी विचार मंथन और रणनीति चल रही है।
डॉ अनिल जैन
मध्यप्रदेश अस्थायी सहायक प्राध्यापक महासंघ।
9329883360 
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