
हर्षित चौरसिया की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विवि (एमयू) जबलपुर के विकास और विस्तार की योजना पर गौर करने की बजाय उससे सम्बद्ध कॉलेजों को धनराशि देने पर जोर दिया गया। एमयू के खजाने में रखी राशि आवंटित करने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों का विकास होगा। हैरान करने वाली बात यह है कि ये वही मेडिकल कॉलेज हैं जिन्हें मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया ने 16 बिंदुओं से ज्यादा आपत्ति लगाने के बाद सीटें बढ़ाने व नए कॉलेजों को 2018-19 के लिए मान्यता देने से इंकार कर डिस्एपू्रवल का लेटर शासन को भेजा है।
MU के पास अपना भवन तक नहीं है
एमपी की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी के विस्तार फंड को इस तरह से बांटने की प्रक्रिया को लेकर चिकित्सा शिक्षा जगत में खलबली मची है। जबकि एमयू का प्रशासनिक कार्यालय नेताजी सुभाष चंद बोस मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक विभाग के भवन में चल रहा है, उसकी अपनी बिल्डिंग बनाने के लिए अभी तक शिलान्यास नहीं हो सका।
फंड को अनुदान के रूप में नहीं बांट सकते: शुक्ला
कार्यपरिषद सदस्य डॉ. चंद्रेश शुक्ला का कहना है कि यह फंड विवि के उन्नयन के लिए है जो निजी व शासकीय कॉलेजों के छात्रों का है, उसे इस तरह अनुदान के रूप में नहीं बांटा जा सकता है और न ही पदों को खत्म किया जा सकता है। यह विवि के अधिनियम व परिनियम में कहीं भी नहीं। मैंने असहमति दर्ज करा दी है और महामहिम कुलाधिपति से जो निर्देश मिलेंगे, उस पर अमल करेंगे।
यदि कोई गलत निर्णय हुआ है तो समीक्षा करेंगे: मंत्री
चिकित्सा शिक्षा मंत्री शरद जैन का कहना है कि बैठक की जानकारी नहीं है, एक्जीक्यूटिव बॉडी स्वतंत्र होती है उसे अपने निर्णय लेने का अधिकार है। यदि कोई निर्णय नियम सम्मत नहीं होगा तो उसकी समीक्षा की जाएगी।