
पिछले साल जून में अयोग्य ठहराए गए थे मिश्रा
चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून 1951, में 10 (ए) के तहत 23 जून, 2017 को तीन साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया था। वहीं, धारा 7 (बी) के अनुसार विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराया, जिससे वे विधानसभा के सदस्य भी नहीं रह सकते थे। यह मामला 2008 के विधानसभा चुनाव का है। तब नरोत्तम ने डबरा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था।
दिल्ली हाईकोर्ट कैसे पहुंचा मामला?
नरोत्तम ने आयोग के फैसले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में चुनौती दी थी, लेकिन वकीलों की हड़ताल की वजह से सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद यह केस जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने इसे सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे सुनवाई के लिए दिल्ली हाईकोर्ट भेज दिया। इसके बाद मिश्रा ने दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अर्जी लगाई, जो खारिज हो गई। बाद में डबल बेंच से भी याचिका खारिज हुई तो नरोत्तम 28 जुलाई को फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट ने इस पर सुनवाई के लिए दिल्ली हाईकोर्ट को आदेश दिया।
कांग्रेस नेता की शिकायत पर मिश्रा के खिलाफ हुई जांच
नरोत्तम के खिलाफ कांग्रेस के राजेन्द्र भारती ने 2009 में आयोग के सामने एक याचिका दायर कर कहा था कि मिश्रा ने 2008 के विधानसभा चुनाव के खर्चे का सही ब्योरा नहीं दिया। उन्होंने कई मदों में किए गए खर्चे नहीं दिखाए, जिनमें ‘पेड न्यूज’ भी शामिल हैं। इसमें उन्होंने 8 से 27 नवंबर के बीच 42 खबरों की प्रतियां भी लगाई थीं, जो पेड न्यूज की श्रेणी में आती है।
आयोग ने मिश्रा की शिकायत की जांच में पाया कि उनकी कुछ अखबारों में प्रकाशित सामग्री पेड न्यूज के दायरे में आती है। आयोग ने माना कि उन्होंने चुनाव खर्च का सही ब्योरा नहीं दिया है। चुनाव खर्च की सीमा 10 लाख रुपए थी और खर्च 13,50,780 रुपए किए। आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत उन्हें सदस्यता से अयोग्य ठहराया।