
राजनीति में रिश्तों के सवाल अक्सर इसी तरह उलझे रहते हैं। दुनिया जानती है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के कट्टर विरोधी थे। दरअसल, यह विरोध दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच नहीं बल्कि सिंह और सिंधिया के बीच का है।
अर्जुन सिंह ने इसकी शुरूआत की। दिग्विजय सिंह ने इसे आम जनता की सुर्खियों तक ला दिया। दिग्विजय सिंह वही नाम है जिसे माधवराव सिंधिया के स्थान पर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। सत्ता में रहते हुए दिग्विजय सिंह ने माधवराव सिंधिया को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं चूका।
30 सितम्बर 2001 को जब माधवराव सिंधिया का एक विमान हादसे में निधन हुआ तो गुना लोकसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में आए। दिग्विजय सिंह तब भी मप्र के मुख्यमंत्री थे लेकिन उन्होंने पार्टीलाइन पर काम किया। पूरी सरकार को ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रचार में झोंक दिया। गुना शिवपुरी की गलियों में दिग्विजय सिंह सरकार के मंत्री हर रोज हाथ जोड़कर घूमते थे लेकिन जैसे ही ज्योतिरादित्य सिंधिया परिपक्व हुए, दिग्विजय सिंह की कूटनीति फिर शुरू हो गई।
कहानी लम्बी है लेकिन इतना बताना काफी है कि यह अभी भी जारी है। राहुल गांधी जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम कैंडिडेट घोषित करना चाहते थे तब दिग्विजय सिंह ने ही इस घोषणा को रुकवा दिया। नेता पतिपक्ष अजय सिंह आज भी अपने पिता की लाइन पर चल रहे हैं। सिंधिया को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं। अब देखना यह है कि जयवर्धन सिंह क्या करते हैं। फिलहाल ताजा खबर यह है कि इस मुलाकात के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लिखा: आज कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह और उनकी टीम से राधौगढ़ में मुलाकात हुई। वे कांग्रेस के युवा और उत्साह से परिपूर्ण नेता हैं।