
सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर राजस्थान हाईकोर्ट के 30 अक्तूबर, 2013 को दिए आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। बता दें कि घरेलू हिंसा अधिनियम वर्ष 2006 में अस्तित्व में आया था। न्यायमूर्ति रंजन गोगई, न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता मोहम्मद तालीब अली के वकील दुष्यंत पाराशर की उस दलील को खारिज कर दिया कि यह अधिनियम 26 अक्तूबर, 2006 में अस्तित्व में आया था, ऐसे में पहले की घटना पर यह अधिनियम लागू नहीं हो सकता। वकील पाराशर का कहना था कि अगर अधिनियम को पूर्व की घटनाओं पर लागू किया गया तो पति-पत्नी के बीच पहले ही खत्म हुए संबंधों में इसका दुरुपयोग होगा।
वहीं, याचिकाकर्ता की पूर्व पत्नी की ओर की से दलील दी गई कि घरेलू हिंसा अधिनियम में पत्नी और तलाकशुदा पत्नी के बीच किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है। अधिनियम आने से पहले पति द्वारा की गई प्रताड़ना को लेकर पत्नी इस अधिनियम के तहत राहत या ‘उपचार’ की गुहार लगा सकती है।
ये निर्णय दिया था हाईकोर्ट ने
राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि भले ही महिला की शादी घरेलू हिंसा अधिनियम के आने से पहले टूट गई हो, लेकिन इसके बावजूद शादी के बंधन में बंधे होने के दौरान हुई प्रताड़ना के लिए वह इस अधिनियम के तहत अपनी शिकायतों का निपटारा करने की गुहार लगा सकती है। कोर्ट ने कहा था कि तलाशुदा पत्नी और अधिनियम के लागू होने के बाद पति के साथ रह रही पत्नी में विभेद नहीं किया जा सकता। source