यहां स्थित है दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कारी श्रीयंत्र | WORLDS LARGEST SHRI YANTRA

भारत के एतिहासिक मंदिर। भारत में अब दुनिया के सबसे बड़े श्रीयंत्र की स्थापना कर दी गई है। यह 16.5 किलो वजन का है। उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा शहर स्थित श्री कल्याणिका हिमालय देवस्थानम में इसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई। इसके बाद आने वाले 12 दिनों तक डोल आश्रम में पंडितों द्वारा श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी। 

126 फुट ऊंचे श्रीपीठम मंदिर में स्थापना
गौर हो कि डोल आश्रम में 126 फुट ऊंचे श्रीपीठम मंदिर में इस श्रीयंत्र की स्थापना की गई है। बताया जा रहा है कि इस श्रीपीठम में एक साथ पांच सौ लोग ध्यान कर सकेंगे। इस श्रीपीठम का निर्माण साल 2012 से चल रहा था। श्रीपीठम में श्रीयंत्र की स्थापना का अनुष्ठान 18 अप्रैल से 29 अप्रैल तक चलेगा। इस अवसर पर 21 से 29 अप्रैल तक मुरारी बापू यहां कथा करेंगे।

अब तक मप्र में था दुनिया का सबसे वजनदार श्रीयंत्र 
अबतक मध्यप्रदेश के अमरकंटक में ही एक टन का श्रीयंत्र स्थापित किया गया था लेकिन अब उत्तराखंड में डेढ़ टन वजनी ये श्रीयंत्र स्थापित किया जा चुका है जो कि दुनिया का सबसे बड़ा श्रीयंत्र है। इस श्रीयंत्र स्थापना कार्यक्रम में विभिन्न प्रदेशों समेत विदेशों से भी काफी संख्या में साधक पहुंचे हैं।

क्या होता है श्रीयंत्र, इससे क्या लाभ मिलता है
श्रीयंत्र की अधिष्ठात्री देवी महात्रिपुर सुंदरी (षोडशी देवी) हैं. श्रीयंत्र के रुप में इन्हीं की पूजा की जाती है. इस यंत्र की पूजा से व्यक्ति को मोक्ष तथा भोग दोनों की ही प्राप्ति होती है. इस यंत्र की उपासना यदिभक्तजन पूर्ण श्रद्धा से करते हैं तब उन्हें आर्थिक रुप से भी लाभ मिलता है. इस यंत्र की पूजा, भगवान शिव की अर्धांगिनी महालक्ष्मी के रुप में भी की जाती है. इनकी पूजा से विशेष प्रकार के भौतिक सुखों कीप्राप्ति होती है.

माना गया है कि श्रीयंत्र की दक्षिणाम्नाय उपासना करने वाले व्यक्ति को भोग की प्राप्ति होती है और ऊर्ध्वाम्नाय उपासना करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए कहा जा सकता है कि यह श्रीयंत्र मोक्ष तथा मुक्ति के लिए भी लाभ प्रदान करता है. मूल रुप से यह श्रीयंत्र पार्वती अर्थात अंबिका हैं.

श्रीयंत्र से जुड़ी कथा | Shri Yantra Methodology
श्रीयंत्र के विषय में अनेकों कथाएँ मिलती है. जिनमें एक कथा देवी लक्ष्मी के रुष्ट होने की भी है। एक अन्य कथा के अनुसार आदि शंकराचार्यजी ने भगवान शिव को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया। भगवान शिव ने उन्हें वर माँगने को कहा। इस पर शंकराचार्य जी ने विश्व का कल्याण करने के बारे में पूछा तब शिव भगवान लक्ष्मी स्वरुप श्रीयंत्र की महिमा के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं कि इस श्रीयंत्र के पूजन से मनुष्य का पूर्ण रुप से कल्याण होगा। भगवान शिव ने बताया कि यह त्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है। श्रीयंत्र में बना चक्र ही देवी का निवास स्थान है और उनका रथ भी यहीं है। इस यंत्र में देवी स्वयं विराजती हैं। तभी से इस श्रीयंत्र की पूजा का विधान चला आ रहा है। श्रीयंत्र को सिद्ध करने के लिए वैशाख, ज्येष्ठ, कार्तिक, माघ आदि चांद्र मासों को उत्तम माना गया है। जो व्यक्ति दीपावली की रात्रि में इस यंत्र को सिद्ध करता है वह पूरे साल आर्थिक रुप से संपन्न रहता है।

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