बाबाओं के चक्रव्यूह में फंसी भाजपा: इन्हे टिकट भी चाहिए और मंत्रीपद भी | MP NEWS

भोपाल। सीएम शिवराज सिंह ने 5 बाबाओं को मंत्री दर्जा देकर नर्मदा घोटाला को उजागर करने वाली रथयात्रा तो रोक ली लेकिन शिवराज के इस फैसले से भाजपा एक नए चक्रव्यूज में फंस गई है। अपने अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली 50 से ज्यादा साधु-संतों ने टिकट की मांग शुरू कर दी है। इतना ही नहीं इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिन्हे ताकतवर मंत्रीपद नहीं मिला तो हाहाकार मचा देंगे। एक बाबा का तो यहां तक कहना है कि जब उमा भारती और योगी आदित्यनाथ सीएम बन सकते हैं तो हम क्यों नहीं। 

दरअसल, यूपी में योगी आदित्यनाथ के सीएम बन जाने के बाद बाबाओं में कुर्सी के प्रति मोह बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। चूंकि भाजपा ही साधु-संतों की प्रतिनिधि पार्टी है अत: उसी से उम्मीद भी की जा रही है। कर्नाटक चुनाव में भी 1 दर्जन से ज्यादा साधु-संतों ने टिकट का दावा ठोक दिया है। अब यही हालत मप्र की भी होने जा रही है। 

सेकंड लाइन खड़ी हो गई
पार्टी नेता मानते हैं कि उमा भारती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी निरंजना ज्योति जैसे साधु नेताओं के साथ यह सेकंड लाइन खड़ी हो गई है। उल्लेखनीय है जिन पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है उनमें से दो बाबा यानि योगेंद्र महंत एवं कम्प्यूटर बाबा खुले तौर पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के खिलाफ नर्मदा घोटाला रथ यात्रा निकालने वाले थे। वे पूरे साधु समाज को इकट्‌ठा कर रहे थे। साथ ही नर्मदा किनारे से लगे गांवों में जन समर्थन जुटाने की तैयारी में भी लग गए थे।

उन्होंने आरोप लगाए थे कि मुख्यमंत्री की नमामि नर्मदा यात्रा के दौरान जो साढ़े छह करोड़ पौधों को रोपा गया है, उसमें घोटाला हुआ है। वे धमकी दे रहे थे कि साधु समाज नर्मदा के नाम पर हुई इस राजनीति की पोल खोलेगा और एक एक पौधे की गिनती करेगा। उन्होंने बाकायदा सूचना के अधिकार के तहत संबंधित इलाकों से जानकारियां जुटा ली थी। यह लोग नर्मदा के अवैध उत्खनन को भी निशाना बना रहे थे। इसमें हो रहे राजनीतिक–प्रशासनिक गठजोड़ को एक्सपोज करने की धमकी दे रहे थे।

सिद्धू, केसी त्यागी को मात दे रहे
एक वरिष्ठ नेता टिप्पणी करते हैं कि किसी घुटे हुए नेता को मात दे, ऐसा काम यह बाबा ब्रिगेड कर रही थी। शिवराज ने इसको भांप लिया और सौदा राज्यमंत्री के स्तर पर आकर पट गया। अब इसका आगे का घटनाक्रम देखिए– जिस ताकत से बाबा शिवराज के खिलाफ खड़े हुए थे, अब पद मिलते ही उतनी ही ताकत से शिवराज का गुणगान कर रहे हैं। क्या कोई दलबदल कर आया नेता भी इतना दम रखता है। ये लोग तो जद नेता केसी त्यागी, नवजोत सिंह सिद्धू के बराबर दिख रहे हैं। सोशल मीडिया में इनके पलटने वाले वीडियो चल रहे हैं और ये बखूबी जनता और मीडिया का सामना कर रहे हैं। ये पक्के लक्षण नेताओं के हैं और ये बताते हैं कि ये बाबा लोग राजनीति के पक्के खिलाड़ी साबित होने वाले हैं।

भय्यू महाराज को चाहिए इंदौर से टिकट 
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी मानते हैं कि इन पांचों बाबाओं में भय्यू महाराज सबसे हाई प्रोफाइल हैं। उनके इंदौर आश्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत तक आ चुके हैं। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति तक उनकी पहुंच है। उनका नाम कई बार इंदौर से लोकसभा टिकट के लिए उभरा था। इंदौर लोकसभा सीट पिछले तीन दशक से स्पीकर सुमित्रा महाजन के पास है. 2019 के चुनाव वे लड़ेंगी या नहीं इसे लेकर हालात स्पष्ट नहीं है। वे अपने 75 वर्ष पूरे कर रही हैं।

भय्यू महाराज अभी 50 साल के हैं और ताई की तरह मराठी भाषी भी हैं। वे अगर चाहे तो टिकट के दावेदार हो सकते हैं। भाजपा का एक वर्ग जो ताई विरोधी है, कई बार महाराज का नाम चुनावी दावेदारी में उछाल चुका है। इस पूरे एपिसोड़ में भय्यू महाराज की भूमिका शिवराज और बाबाओं के बीच मध्यस्थता करने की आ रही है। जिसके कारण उन्हें ‌विशेष तौर पर उपकृत किया गया है।

महंत चाहते हैं विधानसभा लड़ना
इसी तरह योगेश महंत की राजनीतक इच्छाएं प्रबल हैं. तीन बार वे पार्षद का चुनाव लड़ चुके हैं. कांग्रेस से उनकी नजदीकियां रही हैं. भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ वे मैदान पकड़ चुके हैं. अपने नजदीकी लोगों को वे कई बार बता चुके हैं कि वे चुनाव लड़ने वाले हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में वे टिकट के लिए दावेदारी न करे ऐसा नहीं दिखता.

महत्वाकांक्षी हैं कम्प्यूटर बाबा
कम्प्यूटर बाबा को नजदीकी से जानने वाले नेता कहते हैं कि किसी भी दल का नेता हो बाबा का उससे संपर्क है. सिंहस्थ हो या कोई और धार्मिक जमावड़ा बाबा ने समय समय पर अपना विरोध तो कभी समर्थन जताकर अपनी जगह मजबूत की है. वे महत्वाकांक्षी बाबा हैं, और चुनाव के समय उनकी राजनीतिक आकांक्षा से इंकार नहीं किया जा सकता. वे अपने कुनबे को ताकत देने के लिए टिकट भी मांग सकते हैं.

समर्थकों के लिए मांग सकते हैं टिकट
अन्य बाबाओं में नर्मदानंद एवं हरिहरानंद बाबाओं को लेकर चर्चा है कि उनका नर्मदा किनारों में प्रभाव क्षेत्र है. वे अगर चुनाव में भाजपा के किले को मजबूत कर सकते हैं तो अपने समर्थकों के लिए टिकट भी मांग सकते हैं.

सिंहस्थ से सरकार पर भारी
संघ से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सिंहस्थ के बाद ही सरकार पर यह बाबा ब्रिगेड कहीं न कहीं भारी होती दिखाई दी है. सिंहस्थ में सुविधाओं को लेकर साधुओं ने जमकर विरोध किया था. नर्मदा का पानी शिप्रा में डालने को लेकर सरकार कटघरे में आई थी. उस मामले को जैसे-तैसे सरकार ने निपटाया और माहौल अनुकुल बना रहे इसलिए जूना अखाड़ा पीठाधीश्वर अवधेशानंद जी को सरकार के समर्थन में मोर्चा संभालना पड़ा था.

बाबा ब्रिगेड नया फेक्टर
पार्टी हलकों में चर्चा है कि शिवराज अब नर्मदा किनारे के क्षेत्रों में पौधारोपण, जल संरक्षण, जनजागरूकता अभियान का दायित्व देकर इन बाबाओं को एक तरह से सीधे राजनीति में उतार चुके हैं. निश्चित तौर पर 2018 चुनाव में अब प्रदेश में बाबा ब्रिगेड नया फेक्टर होगा.

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