सप्रिय गौतम/मंदसौर। मध्यप्रदेश के बिल्लौद गांव में दो बेटियों का नाम उनके माता-पिता ने 'अनचाही' रखा है। गांव वाले कहते हैं कि यह इतना चौंकाने वाला है कि इन बच्चियों का आधार, जन्म प्रमाणपत्र से लेकर स्कूल तक में यही नाम लिखवा दिया गया है। गांव में रहने वाले कैलाश नाथ और पत्नी कांताबाई की पहले से चार बेटियां थीं, लेकिन उन्हें और उनकी पत्नी को बेटे की चाह थी। वे नहीं चाहते थे घर में एक और बेटी जन्म ले।
इसलिए देवी-देवताओं के सामने माथा टेका, मन्नतें मांगी, टोटके भी किए लेकिन पांचवीं संतान भी बेटी हुई। ऐसे में उन्होंने पांचवीं बच्ची का नाम ही 'अनचाही' रख दिया। बेटी ने बताया कि अभी वो बीएससी कर रही है। वो कहती है कि पहले तो मुझे इस नाम में कोई बुराई नजर नहीं आती थी, लेकिन जब मतलब समझ आया और साथ पढ़ने वाले बच्चे मजाक उड़ाने लगे तो शर्मिंदगी महसूस होने लगी।
10वीं की परीक्षा का फॉर्म भरने के दौरान प्राचार्य लक्ष्मीनारायण पाटीदार से नाम बदलवाने के लिए कहा तो वे बोले- अब कुछ नहीं हो सकता।' किशोरी की मां कांताबाई ने बताया- 'पांचवीं बेटी का नाम अनचाही रखने की सलाह उन्हें सरकारी अस्पताल की एक नर्स ने दी थी। उसका कहना था ऐसा करने से अगली संतान बेटा होगी। हालांकि छठी भी बेटी हुई जो ज्यादा नहीं जी सकी।’
पैरालिसिस का शिकार पिता कैलाशनाथ कहते हैं ‘तीन बड़ी बेटियों की शादी हो चुकी है और चौथी अपने मामा के यहां रहती है। अब यही बच्ची हमारे साथ रहती है। मैं ज्यादा काम नहीं कर सकता इसलिए वही हर काम में हाथ बटाती है। उसने कभी बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी। दूसरों के कहने पर उसका नाम अनचाही रख दिया था लेकिन अब पछतावा होता है। वैसे इस गांव में अनचाही बेटी ये इकलौती लाड़ली लक्ष्मी नहीं है, इसी गांव के किसान फकीरचंद की तीसरी बेटी का नाम भी ‘अनचाही’ है। जन्म प्रमाण-पत्र से लेकर मार्कशीट व आधार कार्ड सहित सभी दस्तावेजों में इनके यही नाम दर्ज हैं।
लोगों के लिए मजाक का जरिया बन चुका अपना नाम बदलवाने के लिए ये किशोरियां सरकारी दफ्तरों से चक्कर काट रही हैं। नाम बदलवाने के लिए हाल ही में दोनों ने शौर्या दल की सदस्य उषा सोलंकी की मदद से मंदसौर के जिला महिला सशक्तिकरण विभाग में भी आवेदन दिया है। अनचाही नाम की दूसरी बच्ची गांव के ही स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ती है। उसकी पीड़ा यह है कि जब भी वह किसी को अपना नाम बताती है तो लोग हंसने लगते हैं। उसे ऐसे देखते हैं जैसे वह कोई अपराधी हो। स्कूल में भी सभी उसे चिढ़ाते हैं। किशोरी के दादा नंदलाल के छोटे भाई बद्रीलाल बताते हैं ‘हम बेटी नहीं चाहते थे। भतीजे फकीरचंद व बहू रानूबाई के यहां लगातार बेटियां हो रहीं थीं, इसलिए मेरी भाभी (किशोरी की दादी) सोनाबाई ने ही तीसरी पोती का नाम अनचाही रख दिया। भाभी सोनाबाई व भतीजा फकीरचंद दोनों अब दुनिया में नहीं हैं। अब हम भी चाहते हैं पोती का सम्मानजनक नाम हो।’