स्टेनोग्राफर्स के स्वतंत्र संघ का गठन | EMPLOYEE NEWS

योगेन्द्र सिंह पवार/होशंगाबाद/भोपाल। प्रदेश में कार्यरत् विभागाध्यक्ष कार्यालयों के स्टेनोग्राफर अपनी मांगों और समस्याओं को शासन के सामने तृतीय वर्ग लिपिक कर्मचारी संघ के बैनर तले उठाते रहे हैं । 1972 तक समकक्ष रहे वेतन संवर्गों में यह संवर्ग आज सबसे निचले वेतनमान क्रम पर है। वैसे तो यह संवर्ग सचिवालय से बाहर तृतीय श्रेणी कर्मचारियों का संवर्ग है, किन्तु कर्त्तव्य की प्रकृति तृतीय श्रेणी से पृथक् होने से इस संवर्ग की समस्यायें भी भिन्न रही हैं। अन्य संघों ने इस संवर्ग की मांगों को शासन के सामने कभी पुरजोर तरीके से नहीं उठाया। 

मान्यता प्राप्त स्वतंत्र अस्तित्व वाले संघ का अभाव तो रहा ही, लिपिक संघ के तिवारी, त्रिपाठी और जोशी गुटों में बंट जाने के बाद इस संवर्ग के कर्मचारी वैचारिक निष्ठा और व्यक्तिगत् कारणों से गुटों में विभाजित हुए। निष्क्रिय और हताश हो चले संवर्ग को एकजुट करने, सेवारत् साथियों को दायित्वों और अधिकारों के प्रति सजग करने, उनके हितों व उत्थान का प्रयास करने और मांगों और समस्याओं को शासन के समक्ष प्रभावी तरीके से रख पाने और निराकरण का प्रयास कराने के उद्देश्य से संघ के गठन का संकल्प लेकर युवा स्टेनोग्राफर मुकेश अहिरवार ने साथियों को जाग्रत् किया। 

आखिरकार रजिस्ट्रार, फर्म और सोसाइटी, भोपाल ने ’’ स्टेनोग्राफर संघ ’’ के नाम से नये कर्मचारी संघ को   24 मार्च, 2018 को पंजीकृत कर लिया । संवर्ग के लिए यह बड़ी जीत और संघर्ष की पहली सीढ़ी है । प्रदेशस्तर पर संघ के संस्थापक सदस्य अमृत बावीसा, लक्ष्मण रामनानी, योगेन्द्र सिंह पवार, आलोक तिवारी, मधुसूदन मेवाड़, ए.आर. लखेरा, बिहारीलाल वर्मा, मुकेश अहिरवार, हृदयेश नारायण शुक्ल, जमुनाप्रसाद, डीएल बडौदिया, उमेश बोरकर, डीपी चतुर्वेदी, लतीफ अहमद, आर.डी. माहौर, जियेन्द्र बरगले, अखिलेश अहिरवार, श्रीमती स्वाति यादव, श्रीमती छाया सुब्रहमण्यम, लखनलाल चौधरी, संजय कुल्हाड़े शीघ्र ही संघ के साथियों के साथ बैठक आयोजित कर लगभग ढाई दशकों से चली आ रही वेतनमान और पदोन्नति विसंगतियों के निराकरण हेतु रणनीति तैयार करेंगे।

संघ के स्वतंत्र अस्तित्व में आने से संवर्ग का मनोबल बढा है, उम्मीद जागी है। जायज मांगों, समस्याओं का समाधान तलाशने के लिए उपयुक्त मंच मिला है। स्टेनोग्राफर बुद्धिजीवी, शांतिप्रिय, अनुशासित संवर्ग है और शालीन तरीकों से जायज मांगों और समस्याओं को शासन के समक्ष रखने में विश्वास करता रहा है, मगर.. 
किसने कहा कि, जोशे बगावत नहीं मुझे।
हक़ चाहिये, किसी की इनायत नहीं मुझे।।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !