महाराष्ट्र के बाद किसानों का निशाना अन्य राज्य | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। महाराष्ट्र में किसान आन्दोलन अपना उग्र रूप दिखाए इसके पहले ही सरकार ने अधिकांश मांगें मान ली। इसमें आदिवासी किसानों को सामुदायिक या वन भूमि का मालिकाना हक देना, फसलें खराब होने पर मिलने वाला मुआवजा बढ़ाना और किसानों की सहमति के बगैर ढांचागत परियोजनाओं के लिए कृषि-भूमि का अधिग्रहण नहीं करना जैसी मांगें आसानी से पूरी होने की संभावना बढ़ी हैं लेकिन सभी कृषि ऋणों की बिना शर्त माफी और एम एस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने जैसी दो अहम मांगों को पूरा कर पाना खासा मुश्किल दिखता है। इस घटनाक्रम का असर अन्य राज्यों में हो सकता है और वहां ये मांगें प्रमुख बन सकती हैं।

महाराष्ट्र सरकार पिछले साल घोषित किसान कर्ज माफी योजना का दायरा वर्ष २००१  तक के लिए बढ़ाने पर सहमत हो गई है लेकिन इस कदम से उसके खजाने पर भारी वित्तीय बोझ पडऩे के अलावा प्रक्रियागत अवरोध भी खड़े हो सकते हैं। राज्य सरकार ने कर्ज माफी योजना के तहत ३४०  अरब रुपये का पैकेज घोषित किया था लेकिन अभी तक केवल १३८  करोड़ रुपये के कर्ज ही माफ हुए यही हाल मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों के हैं । किसी भी हाल में कर्ज माफी बुनियादी तौर पर एक अविवेकपूर्ण विचार है और उसके कई अनचाहे नतीजे होते हैं। कर्ज अदायगी की संस्कृति पर कुठाराघात करने के अलावा कर्ज माफी योजनाएं पहले से ही बदहाल सहकारी संस्थाओं की वित्तीय सेहत भी खराब करती हैं। इन योजनाओं के चलते बैंक किसानों को कर्ज देने से भी परहेज करने लगते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि किसान साहूकारों के चंगुल में फंसने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

फसलों के लिए अधिक एमएसपी के मुद्दे पर विचार के लिए एक समिति के गठन पर सहमति जताकर राज्य सरकारों  ने संभवत: अधिक समय लेने की कोशिश की है। इस बारे में अंतिम फैसला निश्चित तौर पर केंद्र की पहल से ही तय होगा। स्वामीनाथन आयोग ने एमएसपी के लिए विस्तृत उत्पादन लागत (सी2) फॉर्मूला अपनाने का सुझाव दिया था जिसमें फसल उत्पादन से जुड़ी सभी तरह की लागत एवं श्रम मूल्य के अलावा खेत का किराया मूल्य भी शामिल किया जाता है। लेकिन सरकार ने इस पर अपना रुख साफ करते हुए कहा था कि वह एमएसपी तय करते समय केवल भुगतान के तौर पर लगी लागत (ए2) के साथ खेती में लगे परिवार के श्रम मूल्य (एफएल) को ही शामिल करेगी। वैसे सी2 फॉर्मूला लागू कर पाने के लिए जरूरी आंकड़े जुटा पाना खासा मुश्किल है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के तरीके बता रहा नीति आयोग भी ए2 प्लस एफएल फॉर्मूले का सहारा ले रहा है। लेकिन इससे किसानों के खुश होने की संभावना कम है।

किसानों के इस प्रदर्शन के नतीजे जो भी रहें, यह सच है कि कृषि क्षेत्र का असंतोष तमाम राज्यों तक फैला है और इस पर बहुत तेजी से ध्यान देने की जरूरत है। खेती से मुनाफा कमाने की क्षमता में आई गिरावट इसकी मूल वजह है। महाराष्ट्र में कृषि क्षेत्र बेहद खराब दौर से गुजर रहा है। पिछले चार में से तीन साल इसकी कृषि विकास दर नकारात्मक रही है। ऐसे में जरूरत यह है कि घाटा उठाने वाली फसलों की खेती को पशुपालन और मत्स्यपालन जैसे सहयोगी कृषि कार्यों के साथ जोड़ दिया जाए। इससे भी अहम होगा कि किसानों की आय के पूरक के तौर पर गैर-कृषि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार एवं आय के अतिरिक्त अवसर पैदा किए जाएं। अगर ऐसा नहीं होता है तो अन्य राज्यों में भी महाराष्ट्र की तरह किसानों के प्रदर्शन होने तय हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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