मप्र: 200 से ज्यादा अधिकारी भ्रष्टाचार के दोषी, 15 साल से सजा तय नहीं की | MP NEWS

भोपाल। जब चौराहे पर खड़े होकर कोई चिल्लाता है कि सारी सरकार भ्रष्ट है तो सरकार उसका मजाक उड़ाती है, उसे पागल करार दे दिया जाता है परंतु सामने आया मामला इस तरह के आरोप को प्रमाणित करता है। 200 से ज्यादा ऐसे मामले हैं जिनमें भ्रष्टाचार प्रमाणित हो गया लेकिन वरिष्ठ अफसरों ने सजा तय नहीं की। कई मामले तो 15 साल से पेंडिंग कर रखे हैं। भ्रष्ट कर्मचारी/अधिकारी के रिटायर होने तक दोष प्रमाणित होने तक भी सजा नहीं दी जा रही है। 

मुख्य तकनीक परीक्षक सतर्कता द्वारा विभिन्न विभागों के भ्रष्टाचार संबंधी सौंपे गए निरीक्षण रिपोर्ट नौकरशाह दबाकर बैठे हैं। लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 15 साल पहले सौंपे गए निरीक्षण रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की है। दो सौ से अधिक रिपोर्ट्स आला अफसरों की टेबिलों तक पहुंच ही नहीं पाई हैं।

मुख्य तकनीकी परीक्षक मुख्य तौर पर दो तरह से जांच प्रतिवेदन विभागों को सौंपता है। एक किसी शिकायत पर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा दिए गए निर्देश पर तथा दूसरा निर्माण विभागों में हो रहे कामों को लेकर की गई बाहरी शिकायतों पर जांच प्रतिवेदन देना है। जांच प्रतिवेदन संबंधित विभाग को भेजा जाता है। इसमें 21 दिन के अंदर जवाब देना होता है। संगठन द्वारा जारी निरीक्षण प्रतिवेदन जिन पर विभागों ने प्रथम उत्तर नहीं दिया हैं उनमें लोक निर्माण विभाग के अन्तर्गत इसकी संख्या करीब पचास है।

विभाग नहीं दे रहे समय पर जवाब
संगठन निरीक्षण प्रतिवेदन विभिन्न विभागों को भेजकर अपेक्षा करता है कि नियमानुसार 21 दिन में जवाब दें लेकिन कई रिपोर्ट्स में 15 साल से अधिक समय बीतने पर भी उत्तर नहीं आया। ऐसे में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता में सुधार नहीं आ पाता तथा जीरो टॉलरेंस का उद्देश्य भी पूरा नहीं होता है।
आरके मेहरा, मुख्य तकीनीकी परीक्षक (सतर्कता)

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