
पत्रकार श्री गुरुदत्त तिवारी की रिपोर्ट के अनुसार एक करोड़ रुपए का उद्योग लगाने के लिए उद्यमियों को तीन गुना ज्यादा रेट पर जमीन खरीदना पड़ रही है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में 40 हजार छोटे उद्योग लगाने वाले उद्यमियों को लोन देने का लक्ष्य तय किया है। यह विसंगति मप्र के सबसे पुराने इंडस्ट्रीयल एरिया देवास में देखने को मिल रही है। यहां बड़े उद्योगों के लिए जमीन की दर 1400 रुपए है, लेकिन छोटे उद्योगों को 4300 रुपए प्रति वर्ग मीटर में जमीन मिल रही है। दिलचस्प बात यह है कि छोटे और बड़े उद्योगों को जमीन देने वाले सरकारी विभाग भले ही अलग-अलग हों, लेकिन जमीनें एक ही जगह पर हैं, सिर्फ बीच से गुजरने वाला एबी रोड ही इन दोनों औद्योगिक क्षेत्रों को अलग-अलग करता है।
गोविंदपुरा-मंडीदीप में भी कलेक्टर गाइडलाइन से रेट तय होने के बाद जमीनों की कीमतें 1000% तक बढ़ गए थे, लेकिन उद्योग विभाग ने 90% का डिस्काउंट देकर उद्योगों को राहत दी थी। मौजूदा समय में यहां के रेट कलेक्टर गाइडलाइन से 3350 रुपए हैं, लेकिन इसमें 90% का डिस्काउंट दिया जा रहा है। इस तरह मंडीदीप में रेट 1500 रुपए प्रति वर्गमीटर हैं, लेकिन इसमें बड़े उद्योगों को 65% और छोटे उद्योगों को 90% डिस्काउंट दिया जा रहा है।

देवास इंडस्ट्रियल एरिया
देवास का इंडस्ट्रियल एरिया की स्थापना 1970 में हुई थी। इसके प्रबंधन का काम जिला उद्योग और व्यापार केंद्र (डीआईसी) ही देखता था। इसके बाद एकेवीएन का गठन हुआ। इससे यह औद्योगिक क्षेत्र दो हिस्सों में बंट गया। डीआईसी का काम अब डीटीआईसी देख रहा है।
इस तरह हुई गलती
डीटीआईसी ने 2011 में जमीन का निर्धारण किया। इससे जमीन के रेट एकेवीएन के रेट से तीन गुना ज्यादा हो गए। इससे छोटे उद्योगों के लिए जमीन लगाना मुश्किल हो गया। दरअसल, डीटीआईसी ने इंडस्ट्रीयल एरिया में नेशनल हाईवे के रेट तय कर दिए, लेकिन यह इंडस्ट्रीयल एरिया एबी रोड से 3 किमी की दूरी तक फैला है। देवास इंडस्ट्रीयल एरिया दो हिस्सों में बटा है। एक हिस्सा एकेवीएन का है, तो दूसरा डीटीआईसी के पास है।
हम तीन साल से सरकार को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि बड़े उद्योगों की तुलना में छोटे उद्योगों को तीन गुना ज्यादा महंगी जमीन देना न्याय संगत नहीं है। सरकार हमारी बात सुनती तो है, लेकिन अब तक उसने कोई निर्णय नहीं लिया।
अशोक खंडेलिया, अध्यक्ष, देवास इंडस्ट्रीयल एसो.
सच है कि यह एक बड़ी विसंगति है। हम इसका अध्ययन कर रहे हैं। छोटे उद्योगों के प्रमोशन के लिए सरकार काफी कदम उठा रही है। ऐसे में उन्हें बड़े उद्योगों से महंगी जमीन कैसे दी जा सकती है।
वीएल कांताराव, पीएस, एमएसएमई