
इस बजट में नियोजित अनुमान से अधिक राजकोषीय घाटा होने के भी आसार दिख रहे हैं जिससे केंद्र एवं राज्यों का पहले से ही बढ़ रहा घाटा और भी बढ़ेगा। इससे बॉन्ड की पहले से ही ऊंची दरों के और अधिक होने की संभावना दिख रही है। आखिर महंगा पैसा तीव्र विकास की संभावना को भी कम करता है। चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि का 'अग्रिम' अनुमान 6.5 प्रतिशत है जो 6.7 प्रतिशत के पिछले अनुमान से कम है। अगले वित्त वर्ष में भी आर्थिक वृद्धि के अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के 7.4 प्रतिशत के अनुमान से कम ही रहने के आसार हैं लेकिन कम आधार-मूल्य होने और निर्यात गतिविधियों में वृद्धि से इसके सात फीसदी का दायरा पार कर जाने की संभावना जरूर है। भले ही यह राहत की बात होगी लेकिन सच यह है कि निवेश का आंकड़ा एक दशक पहले के स्तर पर पहुंचता दिख रहा है।
ऐसी स्थिति में अधिक राजस्व उछाल की उम्मीद करना बेमानी होगा। वैसे अगर सरकार आम चुनावों के पहले के साल में कुछ घोषणाओं के बारे में सोचती है तो इसकी जरूरत पड़ेगी। इसका मतलब है कि खर्च पर लगाम लगानी सरकार की सबसे बड़ी अहमियत होनी चाहिए। दरअसल यह भी अभी साफ नहीं है कि जीएसटी राजस्व 91,000 करोड़ रुपये के स्तर तक कब पहुंच पाता है? इस साल आर्थिक मनोदशा एवं प्रदर्शन में बदलाव होने की उम्मीद की गई थी लेकिन तस्वीर उतनी आकर्षक नहीं होने से वित्त मंत्री को अभी तक आजमाए न गए राजस्व स्रोतों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। शेयरों पर लंबी अवधि में हुए पूंजीगत लाभ पर कर लगाना इसका सबसे स्वाभाविक जरिया हो सकता है। इस तरह का कर लगाना जोखिमों से परे नहीं होगा। शेयर बाजार पर इसका असर होना तो जाहिर है लेकिन विदेशी निवेशक भी निवेश के लिए कहीं और देख सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।