राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब भारत में इस्लाम का कोई भी अनुयायी अपनी पत्नी को एक बार में तीन तलाक किसी भी माध्यम (ईमेल, व्हाट्सएप और एसएमएस) से देगा तो उसे तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। लोकसभा ने इस आशय के कानून को पारित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते अगस्त में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ सदियों से चली आ रही उस अमानवीय और क्रूर प्रथा को असंवैधानिक ठहराते हुए सरकार से इस संबंध में कानून बनाने का आदेश दिया था. क्या यह अपने आप में विरोधाभासी नहीं है कि इस तरह के प्रगतिशील कदम की अपेक्षा कांग्रेस-वामपंथियों जैसी पार्टियों से थी? लेकिन दक्षिणपंथी और यथास्थितिवादी समझी जाने वाली भाजपा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षक बनकर सामने आई।
वैसे इस कदम को राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है। इसके विपरीत सचाई तो यह है कि सामाजिक बुराइयों का अंत भी आखिर इसी जरिए से होता रहा है। अचरज इस बात पर है कि विधेयक का सर्वाधिक विरोध उन दलों ने किया जो सामाजिक न्याय के पैरोकार होने का दावा करते हैं। इस क्रम में लोकसभा में राजद और बीजद का विरोध और टीएमसी की चुप्पी के पीछे सिवाय वोटों की राजनीति के दूसरी दृष्टि नहीं है।
दरअसल, कट्टरपंथी, रूढ़िवादी और यथास्थितिवादियों की राजनीतिक दुकान किसी भी प्रगतिशील कदम के विरोध पर ही चलती है। इनके सिवाय सभी ने विधेयक का समर्थन किया है। सच तो यह है कि यह विधेयक जिनके हक में है, जब उन्होंने प्रसन्नता जाहिर की है, तो बाकी लोगों के विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाता। कांग्रेस समेत कुछ अन्य राजनीतिक दलों की आपत्ति विधेयक के सजा वाले प्रावधान से संबंधित है। दरअसल, सजा का प्रावधान निरोधक का काम करेगा। फिर भी सजा की मियाद और इस कानून को लागू करने की राह में आने वाली अड़चनों पर सरकार को विचार करना चाहिए। बहरहाल, सरकार के इस ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम का स्वागत करना चाहिए। इसे हिन्दू-मुसलमान वोट की सियासत से देखने के बजाय सिर्फ महिला अधिकार की दृष्टि से देखने की जरूरत है। दुःख तो इसी बात का है, हर कदम पर देश में राजनीति होती है। देश से ज्यादा जरूरी वोट बैंक का फार्मूला अब अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। सज़ा के इस प्रावधान का कितना असर होता है, यह देखना है, इस तरह के कदमों को मजहब विरोधी साबित करने से भी कुछ लोग लगे हैं। उन्हें खुले दिमाग से इस कानून को मानना चाहिए। इसी में सबका भला है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।