
पत्रकार श्री धनंजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार के लिए 2018 चुनौतियों से भरा है। इस साल सत्तारूढ़ दल को विधानसभा चुनाव का सामना करना है, वहीं चुनाव से कुछ महीने पहले नया मुख्य सचिव भी नियुक्त करना है। भाजपा को सत्ता में रहते 14 साल हो गए हैं और प्रदेश में गवर्नेंस की कमजोरी किसी से छिपी नहीं है। इसी दृष्टि से सरकार ऐसा प्रशासनिक मुखिया तलाश रही है जो सख्त हो और बेहतर गवर्नेंस दे सके।
इस नजरिए से दो एसीएस के नाम मुख्य सचिव के दावेदारों के रूप में लिए जा रहे हैं। पहले हैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के एसीएस इकबाल सिंह बैंस और दूसरे जल संसाधन विभाग के एसीएस आरएस जुलानिया। कुछ समय पहले तक वित्त विभाग के एसीएस एपी श्रीवास्तव (1984 बैच) और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश (1985 बैच) भी इस दौड़ में थे, लेकिन अब उन्हें बाहर माना जा रहा है।
सीएम के भरोसेमंद बैंस
1985 बैच के आईएएस बैंस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काफी भरोसेमंद अफसर माने जाते हैं। सीएम पद की कमान संभालते ही चौहान ने 2005 में सबसे पहले बैंस को ही अपना सचिव नियुक्त किया था। इसके बाद वे लंबे समय तक सीएम सचिवालय में रहे। 2011 में संयुक्त सचिव बनकर भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए। विधानसभा चुनाव से ठीक बाद सीएम ने उन्हें केंद्र से बुलाया और फिर सीएम सचिवालय की कमान सौंप दी गई। बतौर एसीएस पदोन्नति तक वे मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव रहे हैं।
सख्त अफसर जुलानिया
लंबे समय से पंचायत एवं ग्रामीण विकास की कमान संभाल रहे एसीएस जुलानिया को हाल ही में जल संसाधन विभाग में भेजा गया है। 1985 बैच के अफसर जुलानिया बेहद सख्त प्रशासक के रूप में पहचाने जाते हैं। सरकार भी उन्हें परिणाम देने वाला अफसर मानती है। अनुशासित और समयसीमा में काम करने के कारण मैदानी अफसरों से लेकर मंत्रालय के अफसर उनके नाम से खौफ खाते हैं।
चुनाव आयोग से भी बैठाने होंगे समीकरण
प्रदेश के मुख्य सचिव की तैनाती से पहले सरकार कई समीकरणों को देखेगी। इसमें चुनाव आयुक्त ओपी रावत का भी एंगल शामिल रहेगा, जो मध्यप्रदेश काडर के ही आईएएस रहे हैं। मप्र में जब विधानसभा चुनाव होंगे तब मुख्य चुनाव आयुक्त कापद रावत संभाल चुके होंगे। ऐसे में सरकार चाहेगी कि ऐसे अफसर को सीएस बनाया जाए, जिससे रावत की पटरी ठीक बैठती हो।