भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। अब तक पॉलिटिकल पार्टियों के अलावा केवल कर्मचारी संगठनों में ही एकजुटता दिखाई देती थी। वो सरकार पर दवाब बनाने के लिए भारी संख्या में सड़कों पर आ जाते थे परंतु मध्यप्रदेश में इन दिनों काफी कुछ बदल रहा है। पिछले दिनों किसान आंदोलन का नजारा सबने देखा था। अब आदिवासी समाज में चौंकाने वाली लामबंदी हो रही है। ये किसी पार्टी के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि नेताओं के खिलाफ हैं और अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या उन नेताओं के सामने आ गई है जो आदिवासियों की राजनीति करते हैं।
बड़वानी, रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर समेत पश्चिम मध्यप्रदेश की करीब 49 सीटों को प्रभावित कर रहे एक गैर राजनैतिक आदिवासी संगठन ने सरकार के सामने चुनौती पेश कर दी है तो उत्तरी मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिला समेत आसपास के कुछ इलाकों में सहरिया क्रांति नाम का एक सामाजिक संगठन सक्रिय है। बीते रोज करीब 15 हजार सहरिया आदिवासियों ने सड़कों पर उतरकर अपने अधिकार की मांग की। वो ना तो उग्र थे और ना ही धमकी भरे बैनर लिए चल रहे थे परंतु उनकी संख्या की धमक जरूर दिखाई दे रही है।
'सहरिया क्रांति' नाम के इस संगठन का संचालन शिवपुरी के पत्रकार संजय बेचैन कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक प्रमोद भार्गव, दैनिक जागरण झांसी के प्रबंध सम्पादक पवन बोहरे, श्री उमर खान, रानू रघुवंशी, अभिषेक विद्रोही, मनोज भार्गव, विजय बिंदास, सतेन्द्र उपाध्याय, सोनू शर्मा, मयंक शर्मा, मोनू सिरसौद, देवा सोनी, नितिन सोनी, सुधीर इस संगठन को सहयोग करते हैं। इत्तेफाक यह है कि उपरोक्त सभी पत्रकार हैं।
क्या मांगे हैं सहरिया आदिवासियों की
कृषि पट्टों को दबंगों के कब्जे से मुक्त कराना,
बंधुआ बने आदिवासियों को मुक्त कराना,
दबंगों द्वारा आदिवासियों के नाम क्रय की गई परिसम्पत्ति की जाँच कर उसे शासकीय घोषित करने,
जिले में तालाबों और नहरों से सिंचाई को लेकर आदिवासियों से हो रहे पक्षपात को रोके जाने,
शिक्षित युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराने,
किसान क्रेडिट कार्ड सहजता से उपलब्ध कराने,
उज्जवला योजना का लाभ शत प्रतिशत सहरियाओं को दिलाए जाने,
ग्राम हातौद में आदिवासी समुदाय और सहरिया क्रांति के संयोजक पर हमला करने वालों द्वारा झूठा प्रकरण पंजीबद्ध कराए जाने की न्यायिक जाँच कराए जाने,
आदिवासी छात्रावासों में सुविधायें उपलब्ध कराए जाने,
आदिवासियों के नाम से संचालित स्व सहायता में आदिवासी पदाधिकारी ही नियुक्ति किए जाने,
सहरिया बस्तियों में पेयजल संकट का समाधान प्राथमिकता से किया जाने,
सामुदायिक भवन का निर्माण कराए जाने,
प्राथमिकता के आधार पर सहरियाओं को आवास मुहैया कराए जाने,
छात्रावासों में में छात्र अनुपात के मान से शिक्षक तैनात किए जाने,
छात्रावासों में भाषायी शिक्षकों की नियुक्ति किए जाने,
सहरिया बस्तियों में अवैध शराब का विक्रय रोके जाने सहित 27 माँगें शामिल थीं।