
हालांकि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना महिला एवं बाल विकास विभाग का काम नहीं है। कुपोषण एक बड़ी समस्या है जो इस विभाग के लिए चुनौती है लेकिन फिर भी विभागीय मंत्री ने इस तरह का प्रस्ताव तैयार करवाया। मंत्री अर्चना चिटनीस का तर्क है कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इंतजाम करना जरूरी है। जो भी इसकी पात्र होंगी उन्हें लाइसेंस दिया जाएगा, लेकिन प्राथमिकता दुष्कर्म पीड़िताओं को मिलेगी।
उनका तर्क यह भी कि सभी दुष्कर्म पीड़िताओं को हर समय सुरक्षा दे पाना मुमकिन नहीं होता। कई बार देखने में आया है कि आरोपी अगर जमानत पर रिहा होता है तो पीड़िता को धमकाने की कोशिश की जाती है। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए बंदूक का लाइसेंस दिया जाना जरूरी है।
बता दें कि भारत में सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले मध्यप्रदेश में आ रहे हैं। क्राइम रिपोर्ट में रेप पीड़िताओं की हत्या या धमकी के मामले ज्यादा नहीं हैं। इस तरह का प्रस्ताव यह प्रमाणित करता है कि मप्र पुलिस विभाग निष्क्रीय है और वह रेप पीड़िताओं को संरक्षण देने में नाकाम है। रेप के कुछ मामले फर्जी भी पाए जाते हैं। सवाल यह है कि क्या रेप का मामला फर्जी पाए जाने के बाद लाइसेंस निरस्त किया जाएगा।