अनुकंपा नियुक्ति में मृत्यु के समय जो नियम थे, वही लागू होंगे: हाईकोर्ट | EMPLOYEE NEWS

‎इलाहाबाद। उत्तरप्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरण को आवेदन पर विचार करने के दौरान मौजूद नियम के अनुसार फैसला अवैधानिक है। जिस दिन कर्मचारी की मृत्यु हुई, उस दिन जो नियम थे, उसी के अनुसार निर्णय होना चाहिए। इसी के साथ कोर्ट ने भारत संचार निगम लिमिटेड के मुख्य महाप्रबंधक (लखनऊ) को आदेश दिया है कि वह अनुकंपा नियुक्ति का आवेदन करने वाले आश्रित को 10 लाख रुपये का भुगतान तीन माह में करे।

 विभाग ने अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन में विचार करने और उसे खारिज करने में 2 साल लगा दिए थे। इसके बाद कोर्ट की कार्रवाई में काफी समय बीच गया और आवेदन की आयु 50 वर्ष हो गई अत: कोर्ट ने तय किया कि उसे नियुक्ति तो नहीं दी जा सकती परंतु मुआवजा दिया जाना चाहिए। बीएसएनएल के सीजीएम ने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण इलाहाबाद के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें विपक्षी विद्या प्रसाद को मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति देने का आदेश दिया गया था लेकिन कोर्ट ने कैट के आदेश को आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि, विभाग ने नियुक्ति पर विचार करने में दो वर्ष की देरी की और नये नियम के आधार पर निरस्त कर दिया। जबकि कर्मचारी की मृत्यु के समय के नियम के तहत विचार करना चाहिए था। 

खाली हाथ गया तो कानूनी लड़ाई का मतलब नहीं 
कोर्ट ने कहा है कि, आश्रित की आयु पचास साल से अधिक हो गयी है। यदि उसे खाली हाथ लौट जाने दिया गया तो इस लम्बी कानूनी लड़ाई का कोई मतलब नहीं रह जायेगा और न्यायपालिका के प्रति लोगों का विश्वास कम होगा। कोर्ट ने कहा कि, यदि आश्रित को 3 माह में दस लाख नहीं मिलते तो विभाग से 6 फीसदी ब्याज के साथ धन राशि वसूल की जाय। 

यह है पूरा मामला 
विद्या प्रसाद के पिता लाइनमैन के पद पर कार्यरत थे। 7 फरवरी 2003 को सेवा काल में उनकी मृत्यु हो गयी। आश्रित ने नियुक्ति की मांग में अर्जी दाखिल की। जिसकी खामियों को दुरुस्त करने के बाद अर्जी निरस्त करने में विभाग ने दो साल बिता दिए। यही नहीं नए नियम के आधार पर नियुक्ति करने से इंकार कर दिया। जिसे कैट इलाहाबाद में चुनौती दी गई। कैट ने आश्रित कोटे में नियुक्ति का निर्देश दिया। इस आदेश को चुनौती दी गई थी 

कोर्ट ने कैट के आदेश को सही माना लेकिन विपक्षी की आयु पचास साल से अधिक हो गयी थी इसलिए विभाग को आदेश दिया कि वह आश्रित को दस लाख रुपए का भुगतान करे। विभाग की तरफ से कहा गया था कि, पचास साल से अधिक की आयु पर नियुक्ति करने का नियम नहीं है। ऐसे में कोर्ट ऐसा आदेश नहीं दे सकता। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। 

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