राकेश दुबे@प्रतिदिन। आज भारत के सामने रोजगार के अवसर पैदा करना, वर्तमान “विकास माडल” को सबसे बड़ी चुनौती है। आंकड़ेबाज रोजगार पर नोटबंदी के असर को लेकर तर्क-वितर्क कर रहे हैं। लेकिन ये तर्क-वितर्क बेकार हैं क्योंकि रोजगार के आंकड़ों की हमारी प्रणाली वे बारीक सूचनाएं मुहैया नहीं कराती है, जो जरूरी हैं। वर्तमान प्रणाली रोजगार और बेरोजगारी पर जो बुनियादी सूचनाएं मुहैया कराती है, उसमें भी एक समयावधि में या विभिन्न आर्थिक स्थितियों में बहुत कम अंतर नजर आता है। एनएसएस के पांच वर्षीय सर्वेक्षण और अब श्रम ब्यूरो के सालाना सर्वेक्षण बेरोजगारी के स्तर में मामूली बदलाव दर्शाते हैं और कुल आंकड़ों में कोई स्पष्ट रुझान नजर नहीं आता है। असल बात यह है कि भारत में कोई भी व्यक्ति खुले तौर पर बेरोजगार नहीं रह सकता। जिन्हें श्रम बाजार में स्थायी रोजगार नहीं मिल पाता, वे कोई अस्थायी काम करते हैं या परिवार के काम-धंधे में जुट जाते हैं। श्रम बाजार की दशाएं उस आयु वर्ग के व्यक्तियों के अनुपात में उतार-चढ़ाव या रुझान से प्रदर्शित की जा सकती हैं, जो काम करने के लिए तैयार हैं। ये दशाएं स्पष्ट बेरोजगारी दर को प्रदर्शित नहीं करती हैं।
रोजगार सृजन की रणनीति का पता लगाने के लिए हाल का एक अध्ययन २०११-१२ तक के रुझानों का संकेत देता है। यह अवधि ऊंची वृद्धि का चरण है। श्रम बल की सालाना वृद्धि २०११-१२ के दौरान घटकर १.४ प्रतिशत पर आ गई, जो १९९९ -२००० के दौरान १.८ प्रतिशत थी। इसकी एक वजह बच्चों और महिलाओं की कम श्रम भागीदारी दर थी। आबादी में युवाओं की तादाद बढऩे के बावजूद कामगार आबादी में युवाओं में संख्या में इसी अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हुई, इसलिए इतनी बड़ी कामगार आबादी का फायदा नहीं मिल पाया। भारत की जिन देशों से तुलना की जाती है, उनके मुकाबले हमारे यहां कम पढ़े-लिखे कामगारों की संख्या आनुपातिक रूप से ज्यादा थी और कॉलेज शिक्षा प्राप्त कामगारों का अनुपात भी आनुपातिक रूप से ज्यादा था |हाल के रुझान कम अनुकूल नजर आते हैं क्योंकि श्रम ब्यूरो का सालाना रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण दर्शाता है कि बेरोजगारी बढ़कर २०१५-१६ में ५ प्रतिशत पर पहुंच गई है |रोजगार में कितना बड़ा अंतर है? भारत उस स्तर पर कितनी जल्द पहुंच सकता है, जहां कोई छिपी बेरोजगारी न हो और काम करना चाहने वाले सभी लोग उचित वेतन और अच्छी कार्य दशाओं पर रोजगार हासिल कर सकते हैं?
हमने 'मेक इन इंडिया' के जरिये विनिर्माण में वृद्धि और स्किल इंडिया के जरिये कौशल विकास के अभियान शुरू किए हैं। हमें इन दोनों को जोडऩे की जरूरत है ताकि विनिर्माण वृद्धि कामगारों को खपा सके और कौशल विकास आने वाले भविष्य के उद्योगों एवं सेवाओं के लिए क्षमताएं सृजित करे। भारत बुनियादी ढांचा निर्माण, शहरी विकास एवं आवास, तकनीकी विकास एवं इन्हें लागू करने, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में और नई ऊर्जा प्रणाली में निवेश कर रोजगार को बढ़ावा दे सकता है।
संगठित क्षेत्र जरूरी तादाद में रोजगार नहीं मुहैया करा सकता है। रोजगार सृजन के लिए आज के असंगठित क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिए कौशल विकास की जरूरत होगी। वे सभी चीजें, जो उद्यमिता को प्रोत्साहित करती हैं और इस क्षेत्र में कुशल कामगारों को आकर्षित करने के लिए कार्य दशाएं सुधारती हैं, वे इसमें अहम योगदान देंगी। रोजगार पैदा करना ही काफी नहीं है। हमारे श्रम बाजार प्रतिस्पर्धा से दूर हैं और श्रम सुधार न केवल प्रतिस्पर्धी क्षमता हासिल करने बल्कि उचित वेतन और उपयुक्त कार्यदशाएं सुनिश्चित करने के लिए भी जरूरी हैं। भारत रोजगार पैदा करने की अपनी चुनौती से निपट सकता है। लेकिन इसके लिए उसे एक रणनीति बनानी होगी, जो उसके श्रम बाजार के आधुनिकीकरण और असंगठित क्षेत्र की छिपी व्यापक संभावनाओं को तलाशने पर केंद्रित हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।