बाईक और कार का फर्जी INSURANCE करने वाला गिरोह पकड़ा

LUCKNOW: भावी जोखिमों को कम करने का एक अच्छा तरीका है इंश्योरेंस। हेल्थ इंश्योरेंस, मेडिकल इमरजेंसी में आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। परन्तु कुछ लोगों के लिए इंश्योरेंस फर्जीवाड़ा करने का नया जरिया हो गया है। ऐसे ही वेबसाइट बनाकर बाइक और कार के फर्जी बीमा करने वाला गैंग एसटीएफ के हत्थे चढ़ा है। एसटीएफ ने गैंग के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार कर इस फर्जीवाड़े का खुलासा किया। सरगना अपने एजेंटों की मदद से पिछड़े जिले के लोगों को निशाना बना रहा था। 

एसएसपी एसटीएफ अभिषेक सिंह के मुताबिक गिरफ्तार जालसाज जितेंद्र प्रताप सिंह बहराइच के फकरपुर का रहने वाला है। वह लखनऊ में फैजाबाद रोड स्थित यादव मुरारी कॉम्प्लेक्स में आई मैक्स ऑटो इंश्योरेंस लिमिटेड के नाम से अपना ऑफिस चला रहा था। उसके पास से एक डीड ऑफ पार्टनरशिप, आईसीआईसीआई लोंबार्ड की 152 फर्जी ऑटो पॉलिसी, आई मैक्स कंपनी के एजेंट की सूची, डीएम श्रावस्ती को उसकी कंपनी के जरिए दोपहिया वाहनों का बीमा कराए जाने का प्रार्थना पत्र व एक लैपटॉप बरामद हुआ है। 

एसएसपी ने बताया की आईसीआईसीआई लोंबार्ड की तरफ से ही उन्हें शिकायत मिली थी कि आई मैक्स ऑटो इंश्योरेंस लिमिटेड नामक कंपनी उनकी कंपनी के नाम पर गोंडा, श्रावस्ती व बहराइच में गाड़ियों के फर्जी इंश्योरेंस कर रही है। एसटीएफ के अधिकारियों ने इंश्योरेंस रेगुलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी (IRDAI) के प्रतिनिधियों से संपर्क कर इस कंपनी का ब्यौरा मांगा, तो पता चला कि इस कंपनी के पास बीमा करने का अधिकार ही नहीं है। 

यही नहीं ये कंपनी आईसीआईसीआई के अलावा नौ और कंपनियों के नाम पर फर्जी इंश्योरेंस कर रही है। इनमें चार सरकारी और पांच निजी हैं। इनमें नेशनल, यूनाइटेड, ओरिएंटल, न्यू इंडिया, रिलायंस जनरल, भारती एक्सा, इफ्को टोकियो, एसबीआई जनरल इंश्योरेंस और श्रीराम जनरल इंश्योरेंस के नाम प्रमुख हैं। 

जितेंद्र प्रताप ग्रामीण इलाकों में थर्ड पार्टी पॉलिसी बेचता था। उसने अपनी कंपनी में 80 एजेंट बना रखे थे। इन्हें उसने लॉगिन आईडी व यूजर पासवर्ड दे रखा था। जितेंद्र ने बताया कि वह एक इंश्योरेंस ब्रोकर के यहां काम करता था। वहीं से उसे इस फर्जीवाड़े का आइडिया मिला। उसने कुछ दिन एक बीमा कंपनी में भी काम किया। 

उसने बिजनेस सॉल्यूशन के नाम से ऑफिस खोला। अपने एक आदमी को गो डैडी डॉट काम पर पोस्ट किया। फिर उसने इंश्योरेंस एजेंट के मैनेजमेंट से जुड़ा सॉफ्टवेयर तैयार करवाया। वर्ष 2014 से 80 एजेंट उसके लिए इंश्योरेंस पॉलिसी का फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। 

जितेंद्र ने फर्जीवाड़े के लिए सिस्टम की कमी का फायदा उठाया। उसने बताया कि वह ज्यादातर शिकार को थर्ड पार्टी इंश्योरेंस करवाने पर जोर देता था। क्योंकि इसमें केवल वाहन स्वामी की गाड़ी से अन्य व्यक्ति को लगी चोट कवर होती है। इसमें थर्ड पार्टी का क्लेम वाहन स्वामी के पास न आकर मोटर एक्सीडेंटल क्लेम ट्रिब्युनल के पास जाते हैं। जहां चार से पांच वर्ष तक मामले लंबित रहते हैं। जबकि पॉलिसी की अवधि एक साल की होती है। जब तक लोगों को फर्जीवाड़े का पता चलता तब तक काफी देर हो चुकी होती। जितेंद्र ने चार वर्ष तक कंपनी के जरिए फर्जीवाड़ा करने के बाद भागने की तैयारी कर रखी थी। 

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