
आर्कटिक सागर के बारे में किये गए शोध और अध्ययन और चौंकाने वाले हैं| शोध के अनुसार २०५० में इस सागर में मछलियां कम होंगी और प्लास्टिक सबसे ज्यादा| आर्कटिक के बहते जल में इस समय १०० से १२०० टन के बीच प्लास्टिक है जो तरह-तरह की धाराओं के जरिये समुद्र में जमा हो रहा है| प्लास्टिक के यह छोटे-बड़े टुकड़े सागर के जल में ही नहीं बल्कि यह मछलियों के शरीर में भी बहुतायत में पाए गए हैं| ग्रीनलैंड के पास के समुद्र में इनकी तादाद सर्वाधिक मात्रा में पाई गई है| इसमें दो राय नहीं कि दुनिया के तकरीब ९० प्रतिशत समुद्री जीव-जंतु-पक्षी किसी न किसी रूप में प्लास्टिक खा रहे हैं|यह प्लास्टिक उनके पेट में ही रह जाता है जो उनके लिए जानलेवा साबित होता है|
यह प्लास्टिक प्लास्टिक के थैलों, बोतल के ढक्कनों और सिंथेटिक कपड़ों से निकले प्लास्टिक के धागे शहरी इलाकों से होकर सीवर और शहरी कचरे से बहकर नदियों के रास्ते समुद्र में आता है|समुद्री पक्षी प्लास्टिक की इन चमकदार वस्तुओं को खाने वाली चीज समझकर निगल लेते हैं| अगर जल्दी ही समुद्र में किसी भी तरह से आ रहे प्लास्टिक पर रोक नहीं लगाई गई तो तीन दशकों में पक्षियों की बहुत बड़ी तादाद खतरे में पड़ जाएगी|आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच का तस्मानिया सागर का इलाका सर्वाधिक प्रभावित इलाका है|
१९६० में पक्षियों के आहार में केवल पांच फीसद ही प्लास्टिक की मात्रा पाई गई थी|आने वाले ३३ सालों के बाद २०५० में हालत यह होगी कि ९९ प्रतिशत समुदी पक्षियों के पेट में प्लास्टिक मिलने की संभावना होगी| यदि दुनिया जहां के हालात पर नजर डालें तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर पिछले सात दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन कई गुणा बढ़ा है| इस दौरान करीब ८.३ अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक उत्पादन हुआ| इसमें से ६.३ अरब टन प्लास्टिक कचरे का ढेर लग चुका है, जिसका महज ९ प्रतिशत ही रिसाइकिल किया जा सका है|यह विषय सरकारों के साथ नागरिकों की समझ का ज्यादा है, प्राकृतिक संतुलन बनाने के लिए प्लास्टिक का प्रयोग रोकना होगा |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।