
दिल्ली के साथ पूरे देश में इस साल गरमी का विस्तार अक्तूबर के अंत तक महसूस हुआ, जबकि आमतौर पर यह समय मौसम की नमी से सुहावना और सुखद हो चुका होता है। कुछ हालिया अध्ययन बताते हैं कि तेजी से हो रहे शहरीकरण से हमारा वन क्षेत्र लगातार इस तरह घटा कि कार्बन डाई-ऑक्साइड सोखने की उनकी क्षमता भी उसी अनुपात में कम होती गई। जलवायु परिवर्तन की स्थिति में जैसी तेजी आई है और जैसी अनियोजित-असुरक्षित आर्थिक गतिविधियां हम करते जा रहे हैं, उसने जमीन और महासागरों की कार्बन उत्सर्जन साफ करने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है। ऐसे में, सबसे बड़ी जरूरत कार्बन उत्सर्जन सीमित करने और ऐसी नकारात्मक गतिविधियों को नियंत्रित के प्रति हमारी मजबूत प्रतिबद्धता की है, क्योंकि बिना इसके हम जलवायु परिवर्तन को खतरनाक मोड़ पर ले जाने का रास्ता ही देंगे।
भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के क्षेत्र में भी अपनी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत तक बढ़ाने की योजना बनाई है। साथ ही अपना वन आच्छादित क्षेत्र बढ़ाकर कार्बन डाई-ऑक्साइड का स्तर काफी कम करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। यह सब दृढ़ इच्छा शक्ति के बगैर संभव नहीं है। सरकार के अपने लक्ष्य और नीति होती है, उसे लागू करने और ठीक से लागू करने के पीछे सबसे बडी भूमिका नागरिकों की होती है। भारत में सरकार को अभी से लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और नागरिकों को सहयोग। खतरा भारत में ज्यादा है, देश का दुःख है, कुछ लोग प्रकृति संरक्षण को भी धर्म के चश्मे से देखते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।