साँची विश्वविद्यालय: संस्थान है या दुकान, छात्र परेशान

भोपाल। साँची विश्वविद्यालय में पढ़ रहे छात्रों की परेशानियां सामने आईं हैं। ये समस्याएं दूसरे विश्वविद्यालयों जैसी नहीं हैं बल्कि कुछ इस तरह की हैं कि छात्रों का एडमिशन लेना ही पाप हो गया है। वो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। संस्थान के संचालक किसी प्राइवेट दुकान मालिक की तरह व्यवहार कर रहे हैं। छात्रों की स्कॉलरशिप रोक ली गईं हैं। ना आइडी दिए गए और ना ही मार्कशीट दी जा रहीं हैं। हॉस्टल में व्यवस्थाएं नहीं हैं, लेकिन छात्रों को हॉस्टल अनिवार्य बताया जा रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि संचालक किसी भी तरह की लिखित सूचना या नोटिस जारी नहीं करते। पूछने पर बताया जाता है कि यह नियम लागू हो गया है। दूसरी बड़ी समस्या यह है कि साँची विश्वविद्यालय की कोई नियमावली छात्रों को दी ही नहीं गई। परेशान छात्रों ने कुलपति को पत्र लिखा है। उसकी प्रतिलिपि के साथ उन्होंने भोपाल समाचार डॉट कॉम को अपनी सभी समस्याओं से अवगत कराया है। पढ़िए किस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं साँची विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स। 

साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान विश्वविद्यालय में हमने जुलाई, 2016 में विश्वविद्यालय के प्रथम बैच के रूप में एडमिशन लिया. एडमिशन के समय अथवा प्रॉस्पेक्टस में कहीं भी शोद्यार्थियों के लिए हॉस्टल में रहना और मेस में खाना अनिवार्य नहीं है ऐसा उल्लेख नहीं किया गया। पी-एच.डी. शोधार्थी एवं स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों को रहने के लिए एक हॉस्टल जरुर है जो तंग है और एक ही डारमेट्री में 24 लोगों को रहने के लिए बेड डाला हुआ है। चूँकि हमारा अकादमिक परिसर बारला ग्राम, रायसेन जिले में है और वहां किराये पर मकान की सुविधा नहीं है। अतः कुछ विद्यार्थी हॉस्टल में पहले छमाही में रहे। सुविधायों में दिक्कत होने के कारण, उसके बाद कई विद्यार्थियों ने रायसेन, साँची आदि जगह रहने लगे। जिहोंने हॉस्टल फीस भरने में विलम्ब किया, उनको हॉस्टल छोड़ने का आदेश दिया गया। 

स्कालरशिप रोक दिया 
विश्वविद्यालय में एम.फिल./पी-एच.डी. के विद्यार्थियों को स्कालरशिप देने का प्रावधान प्रॉस्पेक्टस में ही था। वो मिलना शुरू हुआ। एक या दो माह देर से यह जून, 2017 तक मिलता रहा। पर उसके बाद स्कालरशिप रोक दिया गया। पूछने पर कहा गया कि पेपर में हस्ताक्षर नहीं हुआ है, फाइल बढ़ी हुई है जैसा कहा गया। कहीं से भी हॉस्टल में अनिवार्य रूप से रहने की बात नहीं थी। न प्रॉस्पेक्टस में, न ही एडमिशन के समय किसी विवरण में।

मौखिक आदेश दिए हॉस्टल में रहना अनिवार्य है
कई लोग जो असुविधाओं के चलते हॉस्टल से बाहर रहने लगे थे उनको मौखिक रूप कहा जाने लगा कि सबको हॉस्टल में रहना अनिवार्य है। जब बहार रह रहे शोधार्थियों ने कहा कि ऐसा कोई नियम तो न एडमिशन के समय था, न प्रॉस्पेक्टस में। वे बाहर में ही कमरा लेकर रहते रहे। अब जबकि जुलाई से अक्टूबर तक चार माह का स्कालरशिप नहीं मिला है, तो शोधार्थी भूखों मरने की स्थिति में आ गए हैं। यह हालाँकि नहीं कहा गया है कि स्कालरशिप हॉस्टल में नहीं आने के लिए रोका गया है, पर लगता यही है। 

ना आईडी कार्ड दिए ना मार्कशीट 
इसके अतिरिक्त जुलाई, 2016 में जिन्होंने एडमिशन लिया था उनको आज एक साल से भी ज्यादा हो जाने पर भी कुछ विद्यार्थी को छोड़कर पहचान पत्र नहीं दिया गया है। हालाँकि उन्होनें विभागाध्यक्ष के माध्यम से फोटो और विवरण कई बार भेजा है। साथ ही सम्बंधित अधिकारी से मौखिक और लिखित रूप से निवेदन किया है। चाईनिज सर्टिफिकेट कोर्स के विद्यार्थी तो एक साल पूरा करके चले भी गए, उनको पहचान पत्र और मार्कशीट नहीं मिला। पिछले साल हुए किसी भी परिक्षा का मार्कशीट भी किसी को नहीं मिला। उपरोक्त समस्याओं का सामना अब 2017 में एडमिशन लिए विद्यार्थी/ शोधार्थी को भी करना पढ़ रहा है।

इसी तरह से पिछले साल जो विद्यार्थी एम.ए. में एडमिशन लिए थे, उनमें प्रथम तीन को तीन हज़ार रूपये स्कालरशिप मिलना था, वो भी एक साल से ज्यादा हो जाने पर भी नहीं मिला है।

HRA वालों को भी हॉस्टल के बाध्य कर रहे हैं 
कुछ विद्यार्थी जो JRF/ RGNF के अंतर्गत रेंट के लिए HRA मिलना था, उसको रोकने के लिए भी प्रयास विश्वविद्यालय प्रशासन कर रहा है। हालांकि उनको UGC से स्कालरशिप और HRA मिलना है। उनको भी हॉस्टल में आने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

फोटो कॉपी मशीन तक नहीं है 
विश्वविद्यालय में स्कैन करने और प्रिंट आउट करने कि सुविधा भी नहीं दी जा रा रही है, जबकि यह मांग पिछले एक साल से की जा रही है। विश्वविद्यालय से रायसेन 8 किलोमीटर दूर है ऐसे में वहां जाना और स्कैन/ प्रिंट कराना आसान नहीं होता। फोटो कॉपी भी जब मर्जी तब करते हैं, जब मर्जी तब नहीं क्योंकि इसके लिए न ही अलग से मशीनें है और न ऑपरेटर।

शोधार्थियों को आकस्मिक राशि रोक ली गई 
शोधार्थियों को आकस्मिक राशि/ कंटीजेंसी मिलना था वह भी पिछले साल का बाकी है। हालाँकि उन्होंने सभी बिल और रशीद जमा करवा दिया है। कोई कैंटीन की भी व्यवस्था नहीं है, ऐसे में चाय, नास्ता के लिए भी तरसना पड़ता है। 

ना लिखित में जवाब देते ना नोटिस 
किसी भी पत्र का विश्वविद्यालय जवाब लिखित में नहीं देता। कोई भी फैसला विश्वविद्यालय लेता है उससे विद्यार्थी/ शोधार्थियों को लिखित सूचित नहीं किया जाता। बस किसी समय भी लागू कर दिया जाता है।

नियमावली तक नहीं दी, नियम लागू बताते हैं 
विश्वविद्यालय के हॉस्टल रूल्स, लाइब्रेरी रूल्स, अध्यादेश, पी-एच.डी. नियमावली आदि कुछ भी नहीं दिया गया है। पर हमपर मन मर्जी से लागू किया जा रहा है। हमसे बस हस्ताक्षर करवा लिया जाता है कि हम सभी नियम मानने को बाध्य होंगें।

हम,लोगों ने इन समस्याओं के निमित सभी विद्यार्थी/ शोधार्थी ने दिनांक 01/11/2017 को कुलपति के नाम एक पत्र देकर इन प्रमुख 18 समस्याओं को दूर करने व 10 दिन में वस्तुस्थिति स्पष्ट करने का निवेदन लिखित रूप में किया है।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !