निजी विवि नियामक आयोगों को चेतना होगा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। आखिर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में पिछले 16 वर्षों के दौरान पत्राचार पाठ्यक्रमों के जरिए दी गई इंजिनियरिंग की डिग्रियों को रद्द घोषित कर दिया। इस दौरान चार डीम्ड यूनिवर्सिटीज के करेस्पॉन्डेंस कोर्स के माध्यम से जिन हजारों स्टूडेंट्स ने इंजिनियरिंग की पढ़ाई की और डिग्री हासिल करके उस आधार पर नौकरी या प्रमोशन आदि प्राप्त किया, उन सबके सिर पर तलवार लटक गई है। 2001 से 2005 के बीच की अवधि में ऐसी डिग्री लेने वालों के लिए फिर भी यह राहत है कि उन्हें अपनी योग्यता सिद्ध करने के दो मौके मिलेंगे। दो प्रयासों में वे एआईसीटीई की परीक्षा पास कर लें तो उनकी डिग्री बची रह जाएगी। 

बाकियों के लिए कोई मौका नहीं है क्योंकि अदालत के मुताबिक 2005 तक यह साफ हो गया था कि ऐसे कोर्सों को मान्यता नहीं दी गई है। पूरे देश में कालेज और विवि के नाम पर सांठ-गाँठ कर ऐसे संस्थान न केवल खोले गये है, बल्कि चल रहे हैं, जो ऐसे गोरख धंधों में लिप्त हैं। इन्हें राजनीतिक संप्रभुओं का समर्थन प्राप्त है या राजनीतिक सम्प्रभु इनके संचालक हैं। मध्यप्रदेश में भी इसके अनेक उदहारण हैं।

यूँ तो यह फैसला चार डीम्ड यूनिवर्सिटी- जेआरएन राजस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ अडवांस्ड स्टडीज इन एजुकेशन इन राजस्थान, इलाहाबाद ऐग्रिकल्चरल इंस्टीट्यूट और विनायक मिशंस रिसर्च फाउंडेशन इन तमिलनाडु के विभिन्न पत्राचार पाठ्यक्रमों की वैधता से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है। एक झूठे वादे पर अपना धन और समय लगाने वाले छात्रों को तो सजा मिल गई लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि अवैध पत्राचार का कोर्स चला रहे संस्थानों और उनके कर्ता-धर्ताओं को इसकी क्या सजा मिलेगी। 

फिलहाल कोर्ट ने इन संस्थानों को स्टूडेंट्स की फीस लौटाने का आदेश दिया है और इस घपले में शामिल अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच के निर्देश भी दिए हैं। उच्च शिक्षा और खासकर तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में निजी पूंजी का दखल बढ़ने के बाद से इसे नियम-कानून के दायरे में रखने में सरकारी तंत्र हद दर्जे तक नाकारा साबित हुआ है।

हाल ये है कि निजी शिक्षा संस्थान या यूनिवर्सिटी मान्यता का आवेदन मात्र देकर कोर्स शुरू कर देते हैं। विज्ञापनों से प्रभावित स्टूडेंट्स इन्हें मोटी फीस देने के साथ अपनी जिंदगी के कई कीमती साल भी इस उम्मीद में दे देते हैं कि इससे उनका करियर पटरी पर आएगा। यह विशुद्ध धोखाधड़ी है, लेकिन हमारा सरकारी ढांचा इस पर आंखें मूंदे रहता है। जो भी थोड़ी-बहुत रोक-टोक अब तक हो सकी है, उसका श्रेय अदालतों को जाता है। यूजीसी, एआईसीटीई, एआईएमसी या अन्य सरकारी नियामक संस्था ने अपनी पहल पर संदिग्ध संस्थानों के फर्जी डिग्री कार्यक्रमों पर अंकुश लगाने की कोई कोशिश की हो, ऐसा उदाहरण शायद ही खोजा जा सके। 

उच्च शिक्षा का निजीकरण खुद में कोई बुरी बात नहीं लेकिन इसे जालसाजों की गिरफ्त से बचाने में सरकार की नाकामी सचमुच चिंताजनक है। सरकार अगर देश की नई पीढ़ी में उच्च और तकनीकी शिक्षा को लेकर उम्मीद बचाए रखना चाहती है तो उसे आगे बढ़कर इस बीमारी का इलाज करना होगा। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के प्रकाश में मध्यप्रदेश सरकार को अपने राज्य में झांकना चाहिए | यह भी यह गोरख धंधा जोरों पर है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !