मोदी ने जल्दबाजी में नोटबंदी की, हमारा 5 प्वाइंट प्रपोजल नहीं माना: बोकिल

पुणे। 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी से ठीक तीन साल पहले पुणे के अर्थक्रांति प्रतिष्ठान के अनिल बोकिल ने मोदी और बीजेपी नेताओं को नोटबंदी का प्रपोजल दिया गया था। उस वक्त मोदी गुजरात के सीएम थे। बोकिल को मोदी से मुलाकात के लिए सिर्फ 9 मिनट का वक्त दिया गया था, लेकिन नोटबंदी का प्रपोजल जानने के बाद उन्होंने इसमें इंटरेस्ट दिखाया और पूरे 2 घंटे तक चर्चा की। 

आज नोटबंदी के 1 साल बाद बोकिल कहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने हमारा 5 प्वाइंट प्रपोजल नहीं माना। शायद सरकार चुनाव से पहले किए गए वादों को निभाना चाहती हो। हमने एक टैक्सलेस कैश इकोनॉमी की बात कही थी। हमारा प्रपोजल एक जीपीएस सिग्नल की तरह था। हमने सिर्फ उन्हें (सरकार को) एक सही रास्ता दिखाया। जैसे जीपीएस गलत रास्ते पर जाने पर आपको दूसरा रास्ता दिखाता है वैसा ही कुछ काम हमने किया। 

हमने पांच साल पहले ही नोटबंदी के फायदे और नुकसान के सभी प्वाइंट्स पब्लिक डोमेन में रखे थे। हमने कभी नहीं बोला कि 500 और 1000 के नोट एक झटके में निकाल दो। सिर्फ 1000 के नोट बाहर निकालते तो 35% का गैप आ जाता। 500 के नए नोट का स्टॉक बढ़ा देते तो 2000 का नोट इंट्रोड्यूस ही नहीं करना पड़ता।

मोदी को क्या प्रपोजल दिया था?
इंजीनियरों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की इस संस्था ने अपने प्रपोजल में कहा था कि इम्पोर्ट ड्यूटी छोड़कर 56 तरह के टैक्स वापस लिए जाएं। बड़ी करंसी 1000, 500 और 100 रुपए के नोट वापस लिए जाएं। देश की 78% आबादी रोज सिर्फ 20 रुपए खर्च करती है। ऐसे में उन्हें 1000 रुपए के नोट की क्या जरूरत? सभी तरह के बड़े ट्रांजैक्शन सिर्फ बैंक से जरिए चेक, डीडी और ऑनलाइन हों। कैश ट्रांजैक्शन के लिए लिमिट फिक्स की जाए। इन पर कोई टैक्स न लगाया जाए।

कौन हैं अनिल बोकिल?
महाराष्ट्र के लातूर में जन्मे 53 साल के बोकिल अर्थक्रांति प्रतिष्ठान के फाउंडर हैं। वे मूल रूप से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। बाद में उन्होंने इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की और पीएचडी भी हासिल की। वे अविवाहित हैं। इंजीनियरिंग के साथ-साथ अनिल मुंबई में कुछ वक्त तक डिफेंस सर्विस से जुड़े रहे। फिर उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में खुद का कुछ करने का सोचा और औरंगाबाद लौटकर इंडस्ट्रियल टूल्स और पार्ट्स की फैक्ट्री लगाई। वे रेयर किस्म के पार्ट्स बनते थे। पहला प्रॉफिट घर ले जाने की बजाय गरीबों में बांट दिया। वे कहते हैं कि ऐसा करके सुकून और खुशी का अनुभव हुआ। वे जिस अर्थक्रांति प्रतिष्ठान को चलाते हैं, वह पुणे की इकोनॉमिक एडवाइजरी संस्था है। इसमें चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और इंजीनियर शामिल हैं। अर्थक्रांति प्रपोजल को संस्थान ने पेटेंट कराया है।

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