क्या TRAI का यह निर्णय जियो के कारण हुआ ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। निश्चित ही भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे।  1 अक्तूबर से दूसरे नेटवर्क पर समाप्त होने वाली कॉल पर लगने वाले इंटरकनेक्शन यूजेज चार्ज (आईयूसी) को आधे से भी अधिक घटाकर 6 पैसा प्रति मिनट करने का निर्णय लिया गया है। यह भी कहा गया है कि सन 2020 से इसे तमाम लोकल कॉल के लिए समाप्त कर दिया जाएगा। यह निर्णय काफी बहस के बाद हुआ है। प्राधिकरण अतीत में भी इसमें कमी कर चुका है।

वैश्विक स्तर पर इसके लिए यही तरीका अपनाया जाता है इसे किसी दृष्टि से मनमाना नहीं कहा  जा सकता है। आईयूसी का पहला नियमन सन 2003 में सामने आया था और सन 2004 में यह 30 पैसे था। सन 2009 में इसे कम करके 20 पैसे किया गया और सन 2010 में दूरसंचार कंपनियों और ट्राई के बीच अदालती जंग के बाद यह लागू हुआ। सन 2015 में एक बार फिर संशोधन करके इसे 14 पैसे कर दिया गया। अब 1 अक्तूबर से यह 6 पैसे हो जायेगा। मौजूदा दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां मोटे तौर पर प्रचलित प्रौद्योगिकी पर ही निर्भर रहती हैं। जबकि नई आने वाली कंपनी ने आधुनिक तकनीक अपनाकर लागत काफी कम कर ली। कुल मिलाकर कॉल संबंधी प्रौद्योगिकी बदल चुकी है या तेजी से बदल रही है। अब सर्किट स्विचिंग का स्थान पैकेट्स ने ले लिया है। चूंकि कॉल समाप्त करने की लागत पैकेट्स में कम आती है इसलिए ट्राई का यह कहना सही है कि उसका काम कम लागत वाली प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाना भी है।

घाटे में में चल रही कंपनियों का तर्क हो सकता है कि नियामक को ऐसा अहम फैसला लेते हुए सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करना चाहिए था। किसी भी नियामक से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है वह ऐसे फॉर्मूले के आधार पर निष्कर्ष निकाले जो दुनिया भर में प्रचलित हों, जबकि इस दौरान वह घरेलू परिस्थितियों पर नजर न डाले। इस समय दूरसंचार उद्योग निहायत तंग आर्थिक हालात से गुजर रहा है और ऐसे में कहा जा सकता है कि ट्राई यह फैसला कहीं अधिक बेहतर वक्त पर ले सकता था। एक अनुमान के मुताबिक दूरसंचार उद्योग पर बैंकों का करीब 4  लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। कुछ सेवा प्रदाता तो बंदी के कगार पर हैं। ऐसे में आईयूसी को कम करके 6 पैसे कर देने से इन कंपनियों को करीब 5000 करोड़ रुपये का झटका पहुंचा सकता है। क्या ऐसे वित्तीय झटका देने से बचा नहीं जा सकता था? 

असल में कंपनियों का मुनाफा भी इससे प्रभावित हो रहा है। हालात को देखते हुए ही मौजूदा कंपनियां आईयूसी में कम से कम यथास्थिति की मांग कर रही थीं। रिलायंस जियो की 90  फीसदी आउटगोइंग कॉल दूसरे नेटवर्क पर होती हैं। जबकि अन्य कंपनियों में मामला अपेक्षाकृत संतुलित है। यही वजह है कि जियो आईयूसी शुल्क को समाप्त करने की मांग कर रहा था। जो हो गया। इसे किसी भी दृष्टि से देखे, जियो का पलड़ा भारी दिखता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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