
इस पूरे मामले में केंद्र सरकार की कथनी और करनी में साफ अंतर दिखाई दे रहा है। सरकार एक ओर निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए चुनाव सुधारों की बात करती है। वहीं राजनीतिक दलों पर कड़ाई करने से अपने पांव पीछे खींच लेती है। दरअसल, संपत्ति में इजाफे का मसला कुछ विवादास्पद भी है। कुछ नेताओं का मानना है कि पिछले पांच साल के दौरान संपत्ति की कीमतों में इजाफा हुआ। इसलिए यह वृद्धि दिखाई दे रही है। फिर भी यह जांच का विषय है। लोकतंत्र में कानून के समक्ष सभी समान हैं। अलबत्ता सभी की संपत्तियों की निष्पक्ष जांच होनी ही चाहिए। लोकतंत्र की कई खूबियां हमारी व्यवस्था में रच-बस गई हैं। बावजूद इसके कानून के समक्ष समानता को हम पूरी तरह लागू नहीं कर पाए हैं।
प्रशासनिक प्रक्रिया में निर्धन और धनवान के बीच की दूरी बढती जा रही हैं। रसूख रखने वाले लोग कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर अपराध करने के बावजूद बच निकलते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केंद्र सरकार पर कुछ असर होना चाहिए। और उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई भी जिन्होंने अवैध तरीके से संपत्ति अर्जित की हैं। अगर सरकार इसमें आनाकानी करती है तो स्पष्ट संदेश जायेगा कि सरकार की रूचि राजनीति को स्वच्छ करने और चुनाव सुधर में नहीं है। इस प्रक्रिया से चुनाव सुधार का मार्ग ही प्रशस्त नही होगा, वरन प्रजातंत्र मजबूत होगा। अभी नेता का व्यवहार जनता में आता दिखता है, जो देश के लिए घातक है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।