
इसमें कोई शक नहीं कि गौरी और उनकी पत्रिका हिंदुत्ववादी विचारधारा की प्रबल विरोधी थी। उनकी पत्रिका में बीजेपी से जुड़े दो नेताओं की मानहानि के मुकदमे में उन्हें छह महीने जेल की सजा भी सुनाई जा चुकी थी। इसके खिलाफ अपील पर उच्चतर अदालत का फैसला अभी तक नहीं आया है, लेकिन गौरी ने अपने दक्षिणपंथ विरोधी विचारों को कभी छिपाने की कोशिश नहीं की। उन्होंने अपने पत्रकारिता के कर्म में कांग्रेसी नेताओं के भ्रष्टाचार को भी उजागर करने और इसे राज्यव्यापी मुद्दा बनाने में कभी संकोच नहीं किया।
मौजूदा सिद्धारमैया सरकार के एक ताकतवर मंत्री भी ऐसे ही एक मामले में उनके निशाने पर आ चुके हैं। आज जब अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है, तब गौरी अंग्रेजी पत्रकारिता छोड़ कर कन्नड़ भाषा की एक पत्रिका को जिंदा रखने, उसे पहले से भी ज्यादा धारदार बनाने में जुटी थीं।
भोपाल की पत्रकारिता में यह विभाजन गंभीर है। देश–विदेश के विषयों और नीति पर सब कभी एकमत यह संभव नहीं है, पर ऐसी खबर पर तो एकमत हो ही सकते है, जो हमारे स्वतंत्र चिन्तन की दुखद परिणिति हो। कोशिश कीजिये, किसी खांचे में फंसने और बंटने से।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।