भगवान शिव और माता जी का सम्बंध और प्रेम दिव्य है। जब शिव के अपमान के कारण सती ने अपने प्राण त्याग दिये तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उनके शरीर को टुकडों मे बांट दिया। धरती मे 52 जगह पर मां के अंग गिरे जो दिव्य शक्ति पीठ है। मां भगवती के शक्ति पीठ तथा शिव नगरी के रक्षक काल भैरव होते है। भैरवजी को शिव का पांचवां रुद्र अवतार माना गय़ा है। शिव ने इन्हे दंडाधिकारी बनाया है। यम तथा शनि देव इनकी आज्ञा से ही किसी को दंड दे सकते है। भैरव को शिवजी का अंश अवतार माना गया है। रूद्राष्टाध्याय तथा भैरव तंत्र से इस तथ्य की पुष्टि होती है।
भैरव जी का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। उनका वाहन श्वान यानी कुत्ता है। भैरव श्मशानवासी हैं। ये भूत-प्रेत, योगिनियों के स्वामी हैं। भक्तों पर कृपावान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं।भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।
भैरव उपासना के दिन
रविवार एवं बुधवार को भैरव की उपासना का दिन माना गया है
कुत्ते को इस दिन मिष्ठान खिलाकर दूध पिलाना चाहिए।
भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ करना चाहिए।
भैरव की प्रसन्नता के लिए श्री बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है। भगवान भैरव को क्षेत्रपाल (द्वारपाल) तथा दंड नायक कहा जाता है बिना भैरव की पूजा के भगवती की पूजा असफल होती है।
कलयुग मे विशेष
भगवान भैरव को श्मशानबासी कहा जाता है समस्त मृत आत्माओ पर इन्ही का नियंत्रण होता है समस्त आत्मा,दैत्य,दानव,भूत प्रेत पिशाच,पिशाचनी पर इन्ही का अधिकार रहता है कलयुग मे काली शक्तियों का विशेष प्रभाव रहता है इसीलिये इस समय भैरव साधना विशेष फलदायी रहती है।
काशी के कोतवाल
शिवजी ने ब्रम्हाजी को अपने भैरवरूप से दंड दिलाने के बाद इन्हे काशी नगरी का अधिस्ठाता बनाया ये काशी नगरी के स्वामी है।
मूल मंत्र*-*ॐ'ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं'। ॐ नमह शिवाय।
भैरवजी के रूप
श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।
क्रूर ग्रहों की शांति के लिये भैरव पूजा
श्री भैरव से काल कठिन से कठिन काल पर भी शासन करते है अत: उनका एक रूप 'काल भैरव' के नाम से विख्यात हैं। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी। यदि आपने नवरात्रि व्रत किया है तो भैरव जी को नमस्कार अवश्य करें अपनी सभी भूलों के लिये क्षमा मांगे, ऐसा करने से भगवान भैरव आपकी दुष्टों से रक्षा करेंगे साथ ही मां की कृपा भी होगीं।
*प.चन्द्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
9893280184,7000460931