
आंकड़ों की नजर से देखें, तो पिछले सात सालों में गो हत्या को लेकर सर्वाधिक हिंसा के मामले 2017 के हिस्से में आते हैं। 2010 से इस विषय को लेकर 2017 तक देश में घटी 78 में से 35 घटनाएँ 2017 में घटी। बावजूद इसके कि प्रधानमंत्री ने इन मामलों में शामिल तत्वों को स्पष्ट चेतावनी भी दी। इन 78 घटनाओं में 30 लोगों की मौत और अनेक लोग घायल हुए है। इन घटनाओं के मूल में सरकार की प्राथमिकता से जुड़े विषय और उसकी कार्य प्रणाली के साथ सरकार के समर्थन और विरोध में उभरते स्वर है। अब ये वैश्विक होने लगे हैं। भारत में नियन्त्रण में चूक से घटना घटती है, आलोचना होती है, विरोध होता है। इसके विपरीत वैश्विक फलक पर इसके समर्थन और विरोध में की गई बातों के परिणाम दूरगामी लक्ष्य को प्रभावित करते हैं।
भारतीय मूल के नोबेल पुरुस्कार प्राप्त वेंकटरामन रामकृष्णन का कैम्ब्रिज में दिया गया व्याख्यान इन दिनों देश के समचार पत्रों में प्रमुखता से छपा है। इसके अंश सोशल मीडिया पर भी तैर रहे हैं। रामकृष्णन ने भारत सरकार को सलाह दी है कि देश में कौन क्या खाएं ? कैसे रहे ? इसकी बजाए सरकार की प्राथमिकता शिक्षा या अन्य विषयों पर हो। उन्होंने चीन और भारत की तुलना करते हुए कहा 50 साल पहले हम बराबरी पर थे अब भारत पिछड़ता जा रहा है। उनके तर्क भारत के नवोन्मेष से जुड़े हैं।
वास्तव में देश में पिछड़ना कोई नहीं चाहता। दिशा और सोच का अभाव दिखाई देता है, और इसकी कुंजी शिक्षा के हाथ में है। सत्ता, विपक्ष, सता या विपक्ष के समर्थक सन्गठन और हर नागरिक की जवाबदारी देश के प्रति क्या है ? इसका व्यापक प्रचार होना चाहिए। छोटे और औछे विषयों के साथ भूतकाल की गलतियों का उलाहना देने और उसके पीछे अपनी गलती को ढंकने की कोशिश बंद होना चाहिए। वैश्विक फलक पर देश की छबि ही विकास का मार्ग बनाती और बिगाडती है, यह समझ भी जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।