अध्यापकों से डरी शिवराज सरकार अफवाहें फैला रही है

आदरणीय संपादक महोदय जी
भोपाल समाचार डॉट कॉम 
सादर प्रणाम
मध्यप्रदेश के तीन लाख अध्यापकों के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु मध्यप्रदेश में क्रमिक अनशन के पश्चात दिल्ली के जंतर-मंतर पर अध्यापकों का प्रदर्शन जारी हैं आंदोलन के दौरान अनेक प्रकार की भ्रामक खबरें शासन के द्वारा फैलाई जाती है। जिसमें यह खबर भी भ्रामक ही है कि लगभग 55% अध्यापक स्कूल नहीं जाते। यानी 01 लाख से भी अधिक अध्यापक स्कूलों से नदारद रहते है। यदि इतनी संख्या में अध्यापक अनुपस्थित रहते है तो शासन को यह भी बताना चाहिए कि अब तक कितने अध्यापकों को निलंबित किया गया। कितने अध्यापकों पर कार्यवाही की गई। यदि इतनी संख्या में अध्यापक अनुपस्थित रहते हैं तो सरकारी स्कूलों का बोर्ड परीक्षा परिणाम विगत तीन वर्षों से प्राइवेट स्कूलों से बेहतर कैसे आ रहा है। 

शासन के अधिकारी अध्यापकों को नीचा दिखाते समय यह भूल जाते हैं कि अनेक जिलों में जिला शिक्षा अधिकारी का दायित्व प्रभारी संभल रहे हैं, हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में प्राचार्यों के पद रिक्त पड़े हुए है, जिन विद्यालयों में प्राचार्य पदस्थ भी हैं वे भी नियमित स्कूल में नहीं पहुँचते। जो स्वयं अनुशासन का पालन नही करते उन्हें मॉनिटरिंग करने की जिम्मेदारी कैसे दे दी जाती है। अपने अधिकार के लिए प्रयास करना कोई अपराध नहीं। विगत 18 वर्षों से शोषित अध्यापकों को अन्य कर्मचारियों के समान सातवां वेतनमान मिलना ही चाहिए और शिक्षा विभाग में संविलियन भी किया जाना चाहिए। 

कार्य कैसे कब और कितना करवाना है, यह शासन के अधिकार क्षेत्र में है। इसके लिए शासन को त्वरित कार्यवाही करनी चाहिए। अखबारों तथा सोशल मीडिया में अनुपस्थिति की खबरों को प्रकाशित करके शासन अकर्मण्यता को छिपाना चाहता है। भारतीय लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार के पास असीम शक्तियां होती है। परंतु अध्यापकों की मांगों का अस्वीकार करने का लोकतंत्रीय तरीका अध्यापकों पर लांछन लगाना कदापि नहीं हो सकता है। शासन और शासन के अधिकारी के ध्यानाकर्षण की विनम्र अपील के साथ।

भवदीय
आशीष कुमार जैन
वरिष्ठ अध्यापक, हरदा

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