शिवराज सिंह जी, सिंधिया का अपमान करना है तो BJP से इस्तीफा दे दो

शैलेन्द्र गुप्ता/भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता से घबराए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके साथी नेता इन दिनों एक बार फिर 1857 के इतिहास की बातें दोहरा रहे हैं। जनता को बता रहे हैं कि किस तरह सिंधिया राजवंश ने अंग्रेजों से मित्रता करके स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नुक्सान पहुंचाए। प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह कहते हैं कि आप इतिहास को बदल नहीं सकते। जो सही है वह तो कहना ही होगा लेकिन सवाल यह है कि सिंधिया राजवंश का अंग्रेजों से मित्रता के लिए तिरस्कार करने का अधिकार भाजपा के नेताओं को कब से मिल गया। भाजपा के किसी भी नेता को यह नैतिक अधिकार नहीं है कि वो सिंधिया को गद्दार पुकारे, क्योंकि इसी सिंधिया राजघराने की दौलत के कारण भाजपा आज इतनी बड़ी पार्टी बन पाई है। यदि फिर भी किसी नेता को यह कुलबुलाहट है कि वो सिंधिया राजवंश के इतिहास को दोहराए तो उसे भाजपा से इस्तीफा दे देना चाहिए। सवाल यह भी है कि भाजपा नेताओं का देशप्रेम और सिंधिया परिवार के प्रति नफरत उस समय कहां थी जब वो ग्वालियर के महल में जाकर झोलियां भर रहे थे। जब राजमाता सिंधिया की कृपा से उनके प्रत्याशी चुनाव जीत रहे थे। 

मुख्यमंत्री मिश्रा ने मिटा दिया था, विजयाराजे ने बचाया
1857 के इतिहास की याद दिलाने वालों को 1967 का इतिहास शायद याद नहीं। जब मप्र में उनके पास 50 सीटें भी नहीं थीं। मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा ने उनके नेताओं को जेल में ठूंस दिया था। पुलिस लाठियां बरसाती थी। तब विजयाराजे सिंधिया ही थीं जो मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा के सामने जाकर ना केवल खड़ीं हुईं बल्कि उन्होंने मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा को चुनौती भी दी कि यदि आज के बाद उनके कार्यकर्ताओं के साथ एक भी अन्यायपूर्ण कार्रवाई हुई तो वो ईंट से ईंट बजा देंगी। विजयाराजे सिंधिया की ताकत का ही परिणाम था कि मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा भी सहम गए। पुलिस पीछे हट गई और भाजपा के संस्थापक नेतागण चुनाव प्रचार कर पाए। यदि राजमाता सिंधिया ना होतीं तो मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा मध्यप्रदेश में भाजपा को कभी पैदा ही नहीं होने देते। 

अपनी शादी की अंगूठी तक दान कर दी थी
विजयाराजे सिंधिया ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के लिए ना केवल अपनी ताकत लगाई बल्कि सिंधिया राजवंश का खजाना भी लुटा दिया था। रामजन्म भूमि आंदोलन में अपने योगदान को भाजपा नेता गर्व से सुनाते हैं। इसी आंदोलन के समय अशोक सिंघल आर्थिक मदद के लिए विजयाराजे सिंधिया से मिलने पहुंचे। जब यह भेंट हुई, राजमाता के पास नगद धनराशि नहीं थी परंतु उन्होंने सिंघल को खाली हाथ नहीं लौटाया। उन्होंने अपनी उंगली में सजी वो रत्नजड़ित मूल्यवान अंगूठी दान स्वरूप दे दी जो जीवाजीराव सिंधिया ने विवाह के समय उन्हे भेंट की थी। इतिहास गवाह है। यदि विजयाराजे सिंधिया आर्थिक मदद नहीं करतीं तो भाजपा की तरक्की इतनी तेज नहीं होती। 

हिम्मत हो तो इस्तीफा देकर अभियान चलाओ
विजयाराजे सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। यह सही है कि 1857 में सिंधिया राजाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया परंतु यह भी उतना ही कड़वा सच है कि उसी सिंधिया राजवंश की दौलत पर आज भाजपा खड़ी हुई है। इसलिए भाजपा के नेताओं को अधिकार नहीं है कि वो सिंधिया राजवंश के प्रति तिरस्कार की भाषा का इस्तेमाल करें। यदि भाजपा में कोई देशभक्त है जो सिंधिया की 57 वाली गद्दारी से नफरत करता है तो उसे भाजपा से इस्तीफा देकर अभियान चलाना चाहिए। विजयाराजे की भाजपा में रहकर सिंधिया का तिरस्कार न्यायोचित कैसे हो सकता है। सही है नंदकुमार सिंह जी, इतिहास को बदला नहीं जा सकता और इतिहास यही है कि भाजपा आज जो कुछ भी है वो गद्दार सिंधिया की दौलत की बदौलत है। 

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