अध्यापक की बिना सहमति के पदस्थापना पर हाईकोर्ट का स्टे

मंडला। ट्रायवल विभाग की विशिष्ठ संस्थाओं में ऑन लाइन परीक्षा में चयनित अध्यापकों की पदस्थापना उनके निवास स्थान से अन्य जिले में साथ ही 900 किमी दूर तक बिना सहमति के की गई है। जबकि इन संस्थाओं में पदस्थापना की पूरी प्रक्रिया पूर्ण रूप से स्वैच्छिक थी। इन विशिष्ठ संस्थाओं में मनमाफिक पदस्थापना नहीं मिलने पर जो अध्यापक नहीं जाना चाहते  साथ ही ऐसे अध्यापक भी हैं जो अब अन्य कारण से किसी भी विशिष्ठ संस्था में जाने की इच्छा नहीं रखते हैं उनसे आयुक्त आदिवासी विकास द्वारा पत्र जारी कर अभ्यावेदन मांगे गये हैं। 

स्पष्ट है कि जिन्होंने अभ्यावेदन प्रस्तुत किया है जब तक अभ्यावेदन का निराकरण नहीं होता  उन्हे अनचाहे विशिष्ठ संस्था के लिये कार्यमुक्त नहीं किया जा सकता है। साथ ही माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में दायर याचिका क्र.डब्लूपी 12157.2017 द्वारा दिनांक 11/8/17 को ऐसे प्रकरण में याचिकाकर्ता को कार्यमुक्त करने में रोक लगा दी गई है और कहा गया है कि याचिकाकर्ता को नवीन पदस्थापना में जाने से इंकार करने का वैधानिक अधिकार है। राज्य अध्यापक संघ के जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर ने सहायक आयुक्त को लिखे पत्र में कहा है कि ट्रायवल कमिश्नर के पत्र के बाद किसी अध्यापक को प्रकरण का निराकरण किये बिना कार्यमुक्त किया जाता है तो वह एकदम अनुचित कार्यवाही होगी। 

ऐसे मामले में राज्य अध्यापक संघ सम्बंधित अध्यापक के सहयोग से माननीय उच्च न्यायालय में प्राचार्य को अकेले प्रतिवादी बनाकर याचिका दायर करने बाध्य होगा और साथ ही अनावश्यक रूप से मामला न्यायालय में जाने और अनुचित कार्यवाही की जाने के कारण सम्बंधित प्राचार्य के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग करेगा। उल्लेखनीय है कि जब से अध्यापकों को बिना सहमति के पदस्थापना आदेश जारी किया गया है वे बेहद मानसिक तनाव में हैं।

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