भोपाल। अगर आप अपनी पढ़ाई के सेक्टर में काम करते हैं तो आप वहां सर्वाइव कर सकते हैं। लेकिन, यदि आप अपनी पढ़ाई के विषय से अलग हटकर कोई काम करते हैं, तो आप उसमें लीडर बन सकते हैं। मैं मैथ्स का स्टूडेंट था और 1982 में मुझे यह भी नहीं पता था कि थायोराइड शरीर में होता कहां है। लेकिन, मैं अपने (कंफर्ट) डेंजर जोन से बाहर निकला और मैंने 2002 में थायोराइड टेस्टिंग की कंपनी शुरू की। 500 रुपए लेकर अपने गांव से चलने वाले इस व्यक्ति की कंपनी आज एनएसई में 4000 करोड़ की कंपनी के तौर पर रजिस्टर है। यह बात साझा की मोटिवेशनल स्पीकर वेलुमणि ने।
मोटिवेशनल स्पीच के दौरान डॉ. वेलुमणि ने सभी को जिंदगी जीने के बारे में अपने अनुभवन साझा करते हुए कहा- सिर्फ जीना लक्ष्य है तो केपीएम (खाओ-पियो-मरजाओ) तक ही सिमट जाएंगे और जीतने का प्रयास करेंगे, तब एकेएपीएम (अच्छा खाओ-अच्छा पियो-मरजाओ) तक पहुंचेंगे।
जिसे इंग्लिश नहीं पता, उसे जल्दी देता हूं जॉब
ध्यान रखिए, इंग्लिश आती है तो जरूरी नहीं कि नॉलेज भी आए, लेकिन अगर नॉलेज हो तो इंग्लिश लैंग्वेज आ ही जाती है। यही वजह है कि, मेरी कंपनी दो मायनों में बहुत अलग है। जिनको इंग्लिश नहीं आती, उसको जल्दी एंट्री मिल जाती है, क्योंकि मुझे लगता है कि इंग्लिश नहीं होती, तो भी नॉलेज अच्छा हो सकता है।
सक्सेस मंत्र
खुद से सवाल पूछना चाहिए कि जीने आए हो या जीतने आए हो।
डिस्कस करोगे तो डिसीजन नहीं ले पाएंगे, इसलिए जब डिसीजन लीजिए तो इस पर डिस्कस मत कीजिए।
जब आप छोटे होते हैं तो आप स्ट्रगल देखते हैं और जब बड़े हो जाते हैं यही स्ट्रगल चैलेंज कहलाता हैं।
लोग कहते हैं आज कॉम्पीटिशन ज्यादा है, लेकिन मुझे लगता है कि कॉम्पीटिशन नहीं बल्कि अब अपॉर्च्युनिटीज ज्यादा हैं।
हमेशा फोकस, लर्न, ग्रो और एन्जॉय पर ध्यान रखें। क्रम बिगाड़ेंगे तो लाइफ खराब होगी।
वे लोग जो कॉम्पीटिशन और हारने से डरते हैं, उन्हें सक्सेज कभी नहीं मिल पाती।