
चुनिंदा चुनौतियां चुनेंगे मोदी
सान्याल ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि मोदी 2014 से किये जा रहे आक्रामक सुधारों को जारी रखने के बजाय चुनिंदा चुनौतियां चुनेंगे। चुनाव की तैयारी में किसी तात्कालिक लाभ की संभावना नहीं होना ही नये सुधारों की राह में रुकावट है। चुनाव के नजदीक आने के साथ ही मोदी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सुधारवादी छवि के बजाय राष्ट्रवादी छवि भुनाने पर ध्यान देंगे। यदि इन 18 महीनों में वह किसी सुधार को आगे बढ़ाते हैं तो वह पूरी तरह मध्यावधि में उसकी सफलता या असफलता पर निर्भर करेगा।’’
बीजेपी ने उठाया नोटबंदी का मामला
उन्होंने काला धन के खिलाफ चली मुहिमों के तहत मई 2014 से अब तक 4313 करोड़ रुपये जब्त किये जाने का हवाला देते हुए कहा कि मोदी फकर से इस तरह की मुहिम शुरू कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मोदी की नीतियों में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती का रुख कायम रहने की संभावना है।
खासकर तब जब भाजपा नोटबंदी का भारी फायदा उठा चुकी है। राजनीतिक दलों के चंदे पर सख्त नियमों की संभावना है तथा बेनामी संपत्तियों पर कार्रवाई और विदेश में स्थित संपत्तियों की जानकारी सार्वजनिक किया जाना भी तेज हो सकता है। सान्याल ने कहा कि विस्तृत मोर्चे पर 2019 के मध्य तक किसी महत्वपूर्ण विधायी सुधार के प्रयास की संभावनाएं कम हैं। मोदी कारोबार को आसान करने तथा सरकारी सुविधाओं को बेहतर करने पर जोर दे सकते हैं।