
इस समय गुरु मुनि सन्यासी अपना प्रवास स्थगित कर जनता के साथ चातुर्मास करते है क्योंकि प्राचीन काल मे वर्षा के समय वन मे रहना तथा एक स्थान से दूसरे स्थान मे प्रवास करना कठिन होता था। इस कारण उन्हे जनता के बीच रहना पड़ता था। जिससे जनता को उनके ज्ञान से अपने अंदर फैली अज्ञानता को दूर करने का मौका मिलता था। इसिलिए इस पर्व को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय आदि गुरु
महामुनि अत्रि की पत्नी तथा परमसती अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा के लिये ब्रम्हा विष्णु तथा शिव ने सन्यासी का वेष धारण किया तथा उनसे नग्न होकर भिक्षा देने को कहा मां अनुसुइया ने अपने पतिव्रता धर्म के बल पर उन तीनो को बालक बनाकर दूध पिलाया। तीनों देवों ने सती अनुसुइया के गर्भ से जन्म लेने के वचन देने के बाद दुर्वासा शिव विष्णु दत्तात्रेय तथा ब्रम्हा ने चंद्र के रूप मे जन्म लिया। बाद मे दुर्वासा तथा चंद्र ने अपना अंश स्वरूप दत्तात्रेय के साथ कर दिया। भगवान दत्तात्रेय परमयोगी तथा आदि गुरु है। नवनाथ तथा 84 सिद्धों के ये गुरु है। सभी गुरुओं के ये गुरु है। दक्षिणभारत तथा महाराष्ट्र मे इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। इनकी पूजा से जातक ज्ञान, भोग तथा मुक्ति पाता है। गुरु पूर्णिमा को इनकी विशेष पूजा की जाती है लोग नारीयल श्रीफल तथा भजन पूजन दक्षिणा से अपने गुरु की पूजा करते है।
नवग्रह मे गुरु
आकाश मंडल के नवग्रह मे देव गुरु व्रहस्पती की महिमा सबसे अलग है ये देवों के गुरु है इन्द्र अर्थात देवों के राजा इनकी सलाह से ही अपना शासन व सुख का भोग करते है। जीवन मे सुख शान्तिपूर्ण भोग करने है तो कुंडली मे गुरु ग्रह की स्थिति अच्छी होनी चाहिये। गुरु ग्रह को ज्ञान, कृपा, पुत्र, धन तथा समस्त प्रकार की वृद्धि का कारक माना गया है। कुंडली मे भाग्य भाव, मोक्ष तथा धनु राशि तथा मीन राशि का स्वामी गुरु ग्रह को माना गय़ा है इनका रंग पीला, अंक 3 तथा दिन गुरुवार माना जाता है। जो भी व्यक्ति गुरु की सेवा करता है उसे उन्नति मान सम्मान तथा ऊंची स्थिति प्राप्त होती है।
प.चन्द्रशेखर नेमा"हिमांशु"
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