
जब इस खुशी में आशा झूमते किसान दिख रहे हों तब कड़वी बातों का जिक्र करना ठीक नही, लेकिन सच्चाई को भुलाना किसी समस्या का हल नहीं है, इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रतिशत में मॉनसून का हिसाब बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। मुद्दा इस 96 प्रतिशत बारिश का देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसा बंटवारा होता है। अगर किसी इलाके में बहुत ज्यादा बारिश हो जाए और किसी अन्य इलाके में बूंद भी न पड़े तो औसत अच्छा ही बना रहेगा, लेकिन देश का एक हिस्सा सूखे का तो दूसरा बाढ़ के संकटसे ग्रस्त होगा। पिछले साल भी मौसम विभाग ने औसत से अच्छी बारिश की भविष्यवाणी की थी, जिसे बाद में संशोधित करके औसत बारिश का रूप दिया गया था। इसके बावजूद मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड के साथ तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों में सूखे जैसे हालात बने रहे।
अच्छे मॉनसून और अच्छी खेती के रिश्तों में संदेह का कोई कारण नहीं, लेकिन अच्छी खेती का मतलब यह नहीं निकलता कि इससे किसानों को राहत मिल जाएगी। अच्छी खेती का फायदा किसानों तक अपने आप नहीं पहुंच जाता। किसानों की बेहतर आमदनी सुनिश्चित करने के लिए बाजार तक उनकी पहुंच और लाभदायक मूल्य सुनिश्चित करना जरूरी है। कभी टमाटर तो कभी प्याज कीमत न मिलने पर किसान सडक पर फेंकता है या मवेशी के हवाले करता है। सरकार समर्थन मूल्य घोषित करती है, पर किसान का भला नही होता। सटीक मौसम की भविष्यवाणी के साथ कुशल खेती और और समझदारी पूर्ण व्यवसाय ही एक मात्र संतुलन का मार्ग है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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