
इस नई व्यवस्था को लेकर डीलरों और उपभोक्ताओं में कई तरह की दुविधाएं हैं। डीलरों का प्रश्न है कि उन्हें रोज-रोज रेट का पता कैसे चलेगा। अभी १५ दिनों में दाम बदलने पर भी कई पेट्रोल पंप मालिकों को सही समय पर जानकारी नहीं मिल पाती। अब रोज-रोज दरें बदलने पर सूचना कैसे पहुंचेगी? हालांकि कंपनियों का कहना है कि पेट्रोल पंपों के ऑटोमेशन और वॉट्सऐप जैसे मोबाइल ऐप के जरिए डीलरों तक सूचना पहुंचाना आसान है। ऐसे माध्यमों की सीमाएं हैं। कभी मालिकों को नुकसान हो सकता है, या फिर वे इसका नाजायज फायदा भी उठा सकते हैं।
अभी कंपनियां भविष्य की कीमतों का अंदाजा लगाकर उसी हिसाब से तेल खरीदती हैं। अब यह संभव नहीं होगा। डीलर कम लाभ पर काम करेंगे और दरों में रोजाना बदलाव से उनकी आय घटने का अंदेशा है। दामों के उतार-चढ़ाव का असर आवश्यक वस्तुओं जैसे अनाज, अन्य खाद्य पदार्थों, फल और सब्जियों पर भी पड़ सकता है। कई विकसित देशों में कंपनियां तेल की कीमतें प्रतियोगिता के आधार पर तय करती हैं, जिसका लाभ उपभोक्ताओं को मिलता है। हमारे यहां सभी तेल कंपनियां मिलकर कीमत तय करती हैं, यानी वे कार्टेल बनाकर कीमतों को ऊंचा रख सकती हैं। लोग मान कर चल रहे थे कि जीएसटी से तेल की कीमत में कमी और एकरूपता आएगी, पर इस नई घोषणा से उनकी उम्मीदों को झटका लगा है। महंगा तेल देश में क्यों है और विशेष कर मध्यप्रदेश में क्यों? यह तो साफ़ करना जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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