
प्रस्तावित हड़ताल की जानकारी देते हुए फेडरेशन की ओर से रविवार बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि खबरों के मुताबिक तेल कंपनियां पेट्रोल डीजल के मूल्य रोज निर्धारित करने का फैसला कर रही हैं। अगर ऐसा होगा तो पेट्रोल-डीजल के रिटेल डीलरों को भारी आर्थिक नुकसान होगा। इसके अलावा ऐसा करना बहुत व्यावहारिक भी नहीं होगा। फेडरेशन का कहना है कि यह योजना जिन पांच जगह पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू की गई है, वहां के डीलर भारी नुकसान झेल रहे हैं। रोज कीमतें तय होने से उनके पास जो स्टॉक बचता है, उसमें उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है। फेडरेशन के प्रवक्ता सुखमिंदरपाल सिंह ग्रेवाल का कहना है कि फेडरेशन के अध्यक्ष अशोक बधवार ने इस बारे में पेट्रोलियम मंत्री को पत्र लिखा है। उनके पत्र के बाद तेल कंपनियों ने 13 जून को मुंबई में बैठक बुलाई है। इसमें होने वाले विचार-विमर्श में फेडरेशन के सदस्य शामिल होंगे।
बयान के मुताबिक तेल कंपनियों को ऐसा करने से पहले कम से कम इसके प्रभाव और रिटेल के मुनाफे वगैरह का अध्ययन करना चाहिए था। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। देश के कुल डीलरशिप नेटवर्क के आधे डीलर औसतन एक महीने में 30,000 लीटर पेट्रोल की बिक्री करते हैं। यही नहीं, 18 हजार लीटर पेट्रोल के एक टैंक को छोटा डीलर सात से 10 दिन में बेच पाता है। रोजाना कीमतें निर्धारित होने में उसे काफी नुकसान होगा। कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां पेट्रोल टैंकर दो तीन दिनों में पहुंचता है। ऐसे में जिस कीमत में पेट्रोल खरीदा गया होगा, उसमें नहीं बिकेगा। फेडरेशन का कहना है कि अभी हर पंद्रह दिन में पेट्रोल-डीजल के मूल्य रिवाइज होते हैं। ऐसा काफी विचार-विमर्श के बाद हुआ था। अगर इसमें कोई भी परिवर्तन करना है तो इसे साप्ताहिक किया जा सकता है, लेकिन रोजाना करना ठीक नहीं है।
फेडरेशन के मुताबिक पेट्रोल-डीजल की बदली कीमतें रात 12 बजे से लागू होती हैं। ऐसे में डीलरों को कीमतें प्रभावी कराने के लिए उस समय पंप पर मौजूद रहना पड़ता है। पंद्रह दिन में एक बार तो देर रात तक जाग कर ऐसा किया जा सकता है, लेकिन रोजाना ऐसा करना संभव नहीं है। इसके अलावा सारी पेट्रोलियम कंपनियां पूरी तरह से ऑटोमेटिक नहीं हैं, ऐसे में भी रोजाना तय समय पर कीमतें बदलना संभव कैसे होगा।