भोपाल। मध्यप्रदेश में मोबाइल एप घोटाला सामने आया है। सरकार ने पिछले 5 साल में 100 मोबाइल एप बनवा डाले। इसके लिए 20 करोड़ रुपए प्राइवेट कंपनियों को दे दिए जबकि ये एप ना तो किसी काम थे और ना ही जनता द्वारा उपयोग किए गए। कुल 100 में से 90 एप निष्क्रिय हो चुके हैं। आरोप है कि सरकार ने कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए एप डवलप करवाए।
शिवराज सिंह सरकार ने आम लोगों को मोबाइल (एम) गवर्नेंस की सुविधा देने के नाम पर करीब 20 करोड़ रुपए खर्च कर 100 मोबाइल एप बनवाए। इनमें से सिर्फ 10 मोबाइल एप ही काम कर रहे हैं, वहीं 90 मोबाइल एप निष्क्रिय हो चुके हैं। कुछ एप तो ऐसे भी हैं, जो दो साल में महज 500 लोगों द्वारा ही डाउनलोड किए गए हैं। यानी दो दिन में मोबाइल एप को एक ही यूजर मिला, जबकि मोबाइल एप बनाने वाली कंपनियां एक निश्चित संख्या में एप डाउनलोड करवाने की गारंटी देती हैं। इसका मतलब जो एप डाउनलोड हुए हैं वे डेवलपर कंपनियों द्वारा ही करवाए गए हैं। अब सवाल ये भी उठता है कि जब सरकार के पास एप डेवलप करने के लिए एक्सपर्ट की लंबी चौड़ी फौज है, तो फिर इन एप को बाहरी एजेंसियों से क्यों डेवलप कराया गया?
मेपआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनके पास इसी काम के लिए विशेषज्ञों की टीम है, लेकिन ज्यादातर विभागों ने हम से राय लिए बिना ही अपने स्तर पर टेंडर निकाल कर प्राइवेट एजेंसियों से मोबाइल एप डेवलप करवाए हैं। सरकारी विभागों को यह आकलन नहीं होता कि किस एप की लागत कितनी होती है। ऐसे में मोबाइल एप वास्तविक लागत से कई गुना अधिक दामों पर बनवाए गए हैं। एक करोड़ से ऊपर की लागत वाले ही कई एप हैं।
कुल मिलाकर यह संदेह करने के लिए पर्याप्त आधार है कि अधिकारियों ने एम गवर्नेंस के नाम पर प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाया और मनमाने दामों पर एप बनवा लिए। जिन कंपनियों को एप डवलप करने का काम दिया गया उनमें से कई तो भाजपा/आरएसएस या इनकी विचारधारा से जुड़ी संस्थाओं के नेताओं से संबद्ध हैं। इस मामले में एक खुली जांच की जरूरत है।