शिवराज सिंह की विदाई पर विचार मंथन शुरू

भोपाल। किसान आंदोलन में शिवराज सिंह सरकार की बिफलता और अंत में 'उपवास का उपहास' के बाद अब चर्चा तेज हो गई है कि सीएम शिवराज सिंह की विदाई का वक्त आ गया है। संघ और भाजपा का एक बड़ा कुनबा तेजी से सक्रिय हो गया है। दिल्ली को यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि यह सही समय है जब शिवराज सिंह को सीएम की कुर्सी से उतार दिया जाए। जनता में अच्छा संदेश जाएगा और शिवराज सिंह के कारण भाजपा के खिलाफ बन रहा माहौल बदल जाएगा। 

भोपाल समाचार के पॉलिटिकल डेस्क के विश्लेषकों का कहना है कि किसान आंदोलन को बहाना है। दरअसल, शिवराज सिंह को अब रास्ते से ही हटाना है। अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव आ रहे हैं। यदि यह चुनाव शिवराज सिंह के नेतृत्व में लड़े गए और शिवराज सिंह फिर से सरकार बनाने में कामयाब हो गए तो वो पीएम मोदी को सीधे चुनौती देने की स्थिति में आ जाएंगे। 2019 से पहले यदि मोदी विरोधी लहर चली तो शिवराज सिंह एक मजबूत विकल्प होंगे। मप्र में 2018 की जीत के बाद शिवराज को वजन देना ही पड़ेगा। वैसे भी जिस तरह से गुजरात मोदी-शाह के कब्जे में हैं, यूपी पर मोदी-शाह की पकड़ बन गई है। छत्तीसगढ़ मोदी-शाह के दरबार में हाथ बांधे खड़ा रहता है और महाराष्ट्र मोदी-शाह के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसे हालात मप्र में नहीं है। मप्र बिना मोदी-शाह के चल रहा है और आगे भी बढ़ रहा है। इतिहास गवाह है मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने सामने कभी किसी का कद बढ़ने ही नहीं दिया। अत: यह गणित फिट बैठता है कि किसान आंदोलन के बहाने शिवराज सिंह को ठीक उसी तरह बाहर निकाल दिया जाए जैसे उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को फार्मूला 75 के नाम पर बेदखल कर दिया था। 

व्यापमं घोटाले में सीएम शिवराज सिंह कानूनी कार्रवाई से तो बच गए लेकिन जनता में आक्रोश अब भी बाकी है। शिवराज सिंह को व्यापमं में मिली क्लीनचिट के पीछे भाई लोग गौतम अडाणी की भूमिका खंगाल रहे हैं। जिनके कमलनाथ के साथ भी बेहद मधुर रिश्ते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तो उनके नजदीकी अक्सर सुर्खियों में बनी रहती है। देश के दिग्गज कारोबारियों से शिवराज सिंह के बढ़ते रिश्ते भी कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रहे हैं। कानाफूसी में कहा जा रहा है कि शिवराज सिंह ने लगभग उन सभी दिग्गज कारोबारियों से रिश्ते बना लिए हैं जो किसी भी नेता को देश का बड़ा नेता बनने में मदद करते हैं। शिवराज सिंह के यही रिश्ते अब शिवराज को नुक्सान पहुंचा सकते हैं। इधर मप्र की भाजपा में भी शिवराज सिंह से नाराज कार्यकर्ताओं की लंबी लिस्ट तैयार हो चुकी है। आरएसएस भी यह मान चुकी है कि मप्र में शिवराज सिंह विरोधी लहर चल रही है। अत: अब इस बात पर विचार किया जा रहा है कि यदि इस समय शिवराज सिंह की विदाई कर दी जाए तो क्या जनता में इसका इतना अच्छा संदेश जाएगा कि 2018 के चुनाव में भाजपा बिना सीएम कैंडिडेट के मोदी को चैहरा बनाकर चुनाव जीत सके। 

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