
इस गांव का नाम आसपास के इलाकों में बड़े सम्मान से लिया जाता है। यहां के बारे में कहावत है कि अंधेरे में भी यदि कोई पत्थर फेंकता है तो वह किसी डॉक्टर या इंजीनियर के घर पर ही गिरता है। यूं तो गांव की आबादी मात्र 900 है, किंतु जो भी यहां हैं वे लाखों में एक हैं।
गांव के हर नागरिक की आंखों में सुख व समृद्धि के सपने पलते हैं। इसको हकीकत में बदलने के लिए वे योजना तैयार कर पूरी ताकत से काम करते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डॉ. एकराम के परिवार में आठ डॉक्टर हैं। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। ये लोग देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
अल्पसंख्यक बहुल बरवा में डॉक्टर और इंजीनियर के अलावा सरकारी सेवा में कार्य करने वालों की भी अच्छी संख्या है। युवा इंजीनियरिग कर प्रतिमाह लाखों कमा रहे हैं। गांव के ही सरकारी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद यहां के बच्चे कुशल मार्गदर्शन में तैयारी में जुट जाते हैं।
सामाजिक एकता का संदेश
शिक्षा के साथ ग्रामीणों की सोच भी आधुनिक हुई है। यहां विभिन्न जाति में सौहार्द्र है। पूर्व मुखिया एहसान अली अंसारी बताते हैं कि छठ पूजा, ईद और और दीपावली को हमलोग एक साथ मनाते हैं। खाड़ी देशों में काम करने वाले यहां के युवा प्रतिमाह लाखों रुपये बैंक में जमा करते हैं। इससे गांव में तेजी से विकास देखने को मिल रहा है। वाल्मीकिनगर के सांसद सतीश चन्द्र दुबे का कहना है कि बरवा में युवा ही नहीं बुजुर्ग भी किसी से कम नहीं हैं। वे एक से बढ़कर एक हैं। मुझे इस बात का गर्व है कि इस गांव का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।