
जी हां, ये हैं रेत के महल जो हर रोज बदल जाते हैं। यह महलनुमा आकृति जांजगीर से करीब 23 किलोमीटर दूर देवरी-चिचौली गांव से गुजरी हसदेव नदी में बनी है। तेज गर्मी ने नदी को सुखा दिया है, किनारों पर बच गई है सिर्फ रेत। गर्म हवाओं के थपेड़ों ने इसी रेत को महल की आकृति दे दी है। इनकी ऊंचाई होगी लगभग चार फीट। रेत पर ऐसे महल बनते और मिटते रहते हैं। हवाओं का रुख बदलते ही ये ढह जाते हैं।
कौतुहल जगाने वाली यह तस्वीर वाइल्डलाइफ व नेचर फोटोग्राफर सत्यप्रकाश पाण्डेय ने खींची हैं लेकिन जब आप इस लोकेशन पर पहुंचोगे तो आपको यह सीन दिखाई नहीं देगा। महल अपनी आकृति बदल चुका होगा। है ना मजेदार। एक ऐसी लोकेशन जो दुनिया में कुछ देर के लिए सिर्फ एक बार बन रही है।