महारावल इलेवन जीत गई पर हारी तो सुल्तान इलेवन भी नहीं | MOTIVATIONAL

अरुण अर्णव खरे। क्रिकेट की 20-20 बिग बैश लीग का महत्वपूर्ण मुक़ाबला खेला जा रहा था। पेशेवर खिलाड़ियों से भरी इस लीग में हर खिलाड़ी येन-केन-प्रकारेण मैच को जीतना चाहता था। खेल में अंपायरों पर दबाब बनाने के हथकण्डों से लेकर छींटाकशी, अपशब्द, नस्लीय टिप्पणियाँ और अनेक अनैतिक कारनामे इस लीग की पहिचान बन चुके थे। कोई किसी खिलाड़ी को मंकी कह कर उकसाता था तो किसी टीम का कप्तान क़पडों में छुपाकर ब्लूटूथ के ज़रिए पवेलियन में बैंठे कोच से सलाह लेता रहता था। कुल मिलाकर किसी समय जेंटलमेन गेम कहे जाने वाले इस खेल से जेंटलनेस पूरी तरह नदारद हो चुकी थी।

इस लीग का आखिरी मुक़ाबला खेलने सुल्तान इलेवन और महारावल इलेवन टीमें मैदान में थी। विजेता को पाँच करोड़ की विपुल इनामी राशि मिलनी थी .. स्पष्टत: दोनों टीमों के लिए यह मैच हार-जीत से परे बहुत कुछ खोने-पाने का भी था। एक रोमांचकारी मैच की प्रत्याशा में पूरा स्टेडियम उत्साह से लबरेज़ था।

सुल्तान एकादश ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाज़ी की और बीस ओवरों में 187 रन ठोंक कर अपनी प्रतिद्वन्द्वी टीम को एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य दिया। प्रतिउत्तर में महारावल इलेवन की शुरुंआत ही ख़राब रही। उसके दोनों ही सलामी बल्लेबाज़ 18 रन के स्कोर पर पेवेलियन लौट गए। 41 रन के स्कोर पर तीसरा विकेट भी गिर गया लेकिन इसके बाद कप्तान जी आर विश्वरूप जम गए, तथापि दूसरे छोर से विकेटों का गिरना जारी रहा। उन्होंने कप्तानी पारी खेली और प्रतिद्वन्द्वी टीम के हर गेंदबाज़ को अच्छी खासी नसीहत दी। उनके स्कवायर कट और ड्राइव देखने लायक थे। जब महारावल इलेवन को जीत के लिए तीन गेंदों पर चार रन चाहिए थे वह 71 रन बनाकर जब आउट हो गए। सारे स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया .. लोगों को कुछ समझ मे ही नही आया कि वह आउट कैसे हो गए। किसी भी प्रतिद्वन्द्वी खिलाड़ी ने अपील भी नहीं की थी। अंपायर ने भी ऊँगली ऊँची नहीं की थी लेकिन विश्वरूप स्वंय ही पेवेलियन की ओर चल पडे थे। उन्होंने ही इशारे से अंपायर को बताया था कि गेंद उनके बल्ले को स्निक करते हुए गई है .. इसके बाद अंपायर ने उँगली उठाई थी। यह सर्वथा अकल्पनीय घटना थी कि कोई खिलाड़ी इस तरह पाँच करोड़ को ठुकरा कर खेल भावना का ऐसा दुर्लभ और अनुकरणीय उदाहरण पेश कर सकता है। प्रतिद्वन्द्वी खिलाड़ी भी हतप्रभ थे। कमेण्ट्रेटर से पूरा हाल जानकर समूचा स्टेडियम विश्वरूप के सम्मान में खड़ा हो गया। करतल ध्वनि से आकाश गूँजने लगा था। प्रतिद्वन्द्वी टीम का प्रत्येक खिलाड़ी भी अपने स्थान पर खड़े होकर तालियाँ बजा रहा था। 

महारावल टीम को अब विजय के लिए दो गेंदों पर चार रन बनाने थे जबकि सुल्तान इलेवन को जीत के लिए एक विकेट चटकाना था। सुल्तान टीम के कप्तान ने अपने खिलाड़ियों से मंत्रणा की और फ़ील्डिंग सजाई। बॉलर ने गेंद फेंकी .. बल्लेबाज़ ने ज़ोर से बल्ला घुमाया लेकिन चूक गया। कोई रन नहीं बना। अब एक गेंद पर चार रन चाहिए थे। बॉलर ने इस बार थोड़ी धीमी गति से गेंद डाली .. बल्लेबाज़ ने पुन: बल्ला घुमाया .. इस बार वह गेंद को मिडऑफ पर धकेलने में सफल रहा .. गेंद धीरे-धीरे बाउंड्री के पास जा रही थी पर कोई भी खिलाड़ी उसे रोकने की कौशिश नहीं कर रहा था। महारावल इलेवन जीत गई .. पर हारी तो सुल्तान इलेवन भी नहीं .. पाँच करोड़ से परे खेल जीत गया था .. खेल भावना जीत गई थी।
अरुण अर्णव खरे
साउथ विण्डसर, अमेरिका

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