
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी.के. जैन की अध्यक्षता वाली एन.सी.डी.आर.सी. पीठ ने कहा कि सर्वेक्षक ने 12 जुलाई, 2000 को बीमा कंपनी को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कंपनी ने 2 साल से अधिक समय तक चुप्पी साधे रखने के बाद 12 दिसम्बर, 2002 को अपने पत्र के माध्यम से दावे को अस्वीकार कर दिया। उसने कहा कि ऐसी स्थिति में हमारे पास यह मानने के सिवा कोई विकल्प नहीं है कि बीमा कंपनी द्वारा संबंधित दावे को अस्वीकार करना अनिवार्य सांविधिक प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन हैै।
गुप्ता की शिकायत के अनुसार 1999 में ओडिशा में आए चक्रवात के दौरान कुछ बदमाशों ने उनका गोदाम लूट लिया था। बीमा कंपनी के सर्वेक्षक ने नुक्सान का सर्वेक्षण किया। आखिरकार बीमा कंपनी ने दिसम्बर, 2002 में यह कहते हुए दावा खारिज कर दिया कि नुक्सान चोरी के चलते नहीं बल्कि लूट के चलते हुआ।
नियम क्या है
यदि दावा अस्वीकार किया गया तो उक्त अवधि में बीमाधारक को लिखित में कारण बताया जाना होता है। घटना के 3 साल बाद दावे को खारिज किए जाने को बीमा कम्पनी की ओर से सेवा में खामी बताया।
क्या है मामला
वर्ष 1999 में ओडिशा में आए चक्रवात के दौरान कुछ बदमाशों ने शिकायकर्ता का गोदाम लूट लिया था। सर्वेक्षक ने 12 जुलाई, 2000 को बीमा कम्पनी को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसके पश्चात कम्पनी ने 12 दिसम्बर, 2002 को पत्र के माध्यम से दावे को अस्वीकार कर दिया।