मप्र में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाला छुपाने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी शिवराज सिंह सरकार | GOVT JOB SCAM

भोपाल। मप्र की शिवराज सिंह सरकार ना केवल घोटालेबाज अफसरों पर पॉवर देती है बल्कि उनके घोटालों को छुपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक केस भी लड़ती है। मप्र वनरक्षक भर्ती घोटाला इसका उचित प्रमाण है। जिसमें सरकार ने 397 पदों पर फर्जी भर्तियां कीं। जब शिकायत हुईं तो सुनवाई नहीं की। दवाब आया तो 3 आईएफएस अफसरों की कमेटी बनाई है और दवाब बनाकर फर्जी रिपोर्ट तैयार करवा ली। जिसमें सबको क्लीनचिट दी गई। अभ्यर्थी एकजुट होकर न्यायालय गए तो सरकार ने भी पूरी ताकत से केस लड़ा लेकिन अंतत: धर्म की विजय हुई और अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट से केस जीतकर आ गए। इस मामले में पोल खोल दी कि शिवराज सिंह सरकार ने एक घोटाले को छुपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ा। केस हारने के बाद भी अभी तक सरकार ने ना तो फर्जी नियुक्तियां पा चुके फोरेस्ट गार्डों की सेवाएं समाप्त कीं हैं और ना ही दोषी आईएफएस अफसरों के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई शुरू की जा रही है। हां, जिन 397 के साथ अन्याय हो गया था, उन्हे मजबूरी में नियुक्तियां जरूर दी जा रहीं हैं। 

खांडेकर ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (उत्पादन) आरके गुप्ता की अध्यक्षता में कमेटी बनी। इसमें अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील अग्रवाल, मुख्य वन संरक्षक एचयू खान और शासन की तरफ से वन अपर वन सचिव संजय मोहर्रिर को रखा गया। कमेटी की दो माह की छानबीन के बाद पता चला कि गंगोपाध्याय ने जिन तीन आईएफएस अधिकारियों अतुल जैन (वर्तमान में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन विकास निगम), अतुल श्रीवास्तव (वर्तमान में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक संरक्षण) और एके सिंह (रिटायर हो चुके हैं) की कमेटी बनाई थी, उसकी रिपोर्ट दबाव डाल कर तीन दिन में बदलवा दी। साथ ही बैतूल और भोपाल के लोगों को मैरिट में कम अंक होने के बाद भी सेवा में रखवा दिया था। 

इसकी वजह से प्रदेश भर की रिक्त सीटों पर 397 लोग वंचित रह गए थे। आरके गुप्ता की कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि जांच रिपोर्ट में साफ लिखा है कि तीन दिन में दूसरी रिपोर्ट दी गई थी। तीन आईएफएस अफसरों की कमेटी को तथ्यों के आधार पर यह बताना चाहिए था कि राज्य स्तर से मैरिट के आधार पर बिना वेटिंग लिस्ट बनाए रिक्त पदों पर भर्ती न हो। जिले की वेटिंग से भर्ती करना गलती होगी। शासन का कहना है कि मुख्यमंत्री अब इस मामले में कार्रवाई का निर्णय लेंगे। यहां बता दें कि गंगोपाध्याय का निधन हो चुका है। 

 वर्ष 2010 में वन रक्षकों की भर्ती के लिए चयन परीक्षा हुई। जिले वार मैरिट लिस्ट बनी।  जिलों ने वैकेंसी के हिसाब से खुद कट ऑफ भी तय किया। इस कट ऑफ के कारण जिलों में कई पद रिक्त रह गए। जानकारी भोपाल आई तो तय किया गया कि अन्य जिलों में रह गए लोगों से रिक्त पद भर दिए जाएं। भोपाल और बैतूल से लोगों को शहडोल-उमरिया भेजा गया। तभी इस मामले ने तूल पकड़ा क्योंकि बैतूल और भोपाल से भेजे गए लोगों के नंबर उमरिया और शहडोल में वंचित रह गए लोगों से कम थे। शहडोल के लोगों ने विरोध किया और कोर्ट गए तो एक-एक करके 397 लोग ऐसे निकले, जिनके ज्यादा नंबर थे पर नौकरी नहीं मिली। 

 मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और पिछले साल 397 लोगों के हक में फैसला आया। तीन माह पहले इसे कैबिनेट में रखा गया तो मुख्यमंत्री खासे नाराज हुए। फिर कहा कि 397 लोगों को नौकरी पर रखा जाए, लेकिन किसके कारण यह स्थितियां बनी, उसकी जांच हो। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !