गैंगरेप: 28 साल बाद मिला न्याय, नाबालिग पीड़िता 44 की हो गई

शिमला। कहते हैं देर से मिला न्याय भी अन्याय के समान ही होता है। हिमाचल प्रदेश में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। यहां गैंगरेप की पीड़िता को 28 साल बाद न्याय मिला। जब घटना हुई तब वो नाबालिग थी। अब जबकि उसे न्याय मिला वो अधेड़ हो चुकी है। उसके बच्चे भी अब बड़े हो गए हैं। हद तो ये है कि गैंगरेप के दो आरोपी अभी भी फरार हैं। एक की मौत हो गई और एक को सजा का ऐलान होना बाकी है। मनाली में 8 जुलाई 1989 को एक नाबालिग से नौ लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। मामले को इस कदर गवाहों के बयानों और अदालती कार्रवाई में उलझाया गया कि दोषियों को 28 साल बाद सजा मिली। हैरानी की बात है कि पांच दोषियों को महज तीन-तीन साल की सजा ही मिली है। आरोपियों में से एक चुन्नी लाल पर अभी हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। चुन्नी लाल की उम्र इस समय 69 साल की है। जिन दोषियों को सजा मिली है, उनमें से कइयों के पोते हो चुके हैं। 

दुष्कर्म के समय नाबालिग लडक़ी की आयु महज साढ़े पंद्रह साल की थी। अब उसकी उम्र 44 साल होने वाली है। ये दर्दनाक घटना वर्ष 1989 के जुलाई महीने की है। मनाली की रहने वाली लडक़ी वीडियो पार्लर में फिल्म देखने गई थी। वहां उसे विजय कुमार नाम के युवक ने फुसलाया और बाद में अपने साथियों के साथ मिलकर गैंगरेप किया। दरिंदगी की इंतहा ये थी कि पीडि़ता के साथ नौ लोगों ने गैंगरेप किया। उनमें से दो अभी भी फरार हैं। एक की मौत हो चुकी है तो एक व्यक्ति पर फैसला आना बाकी है।

हाईकोर्ट में फैसले के दौरान अदालत ने पांचों दोषियों को तीन-तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। वैसे गैंगरेप में कम से कम दस साल की कठोर कैद की सजा होती है, लेकिन हाईकोर्ट ने ये पाया कि निचली अदालत में केस लड़ते-लड़ते दोषियों को अढाई दशक से अधिक का समय हो गया है। अन्य कई पहलुओं पर गौर करते हुए दोषियों को महज तीन-तीन साल की सजा ही सुनाई गई।

कुछ इस तरह उलझा मामला 
जुलाई 1989 में दुष्कर्म के आरोपियों के खिलाफ मनाली थाना में मामला दर्ज हुआ। जांच के बाद पुलिस ने निचली अदालत में चालान पेश किया। कुल दस गवाह पेश किए गए। निचली अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया। सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने फिर से ट्रायल कोर्ट के फैसला करने के आदेश दिए। हैरानी की बात है कि निचली अदालत ने फिर से आरोपियों को बरी करने के आदेश दिए। इस तरह मामला उलझता रहा और न्याय लंबा खिंचता गया। राज्य सरकार ने दूसरी बार हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने फिर 2017 में दोषियों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई। अलबत्ता सभी को पचास-पचास हजार रुपए हर्जाना भरना होगा। ये ढाई लाख का हर्जाना पीडि़ता को मिलेगा।

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