तो क्या CAG और सिंहस्थ से सरकार को बचाने के लिए हुआ था विधानसभा में हंगामा

उपदेश अवस्थी/भोपाल। लंबे समय के बाद मप्र विधानसभा का कोई सत्र सही दिशा में जा रहा था। मुद्दे उठाए जा रहे थे। चर्चाएं हो रहीं थीं। विधायकों को बोलने का मौका मिल रहा था। व्यवस्थाएं सुधर रहीं थीं। रात 9-9 बजे तक सत्र चल रहा था। ना बेतुके हंगामे थे और ना बेवजह का स्थगन लेकिन 22 मार्च को अचानक विधानसभा में हंगामा भी हुआ और लंच तक आते आते ​सदन स्थगित भी कर दिया गया। 

क्या हुआ था सदन में
नेता प्रतिपक्ष ने शून्यकाल के दौरान अचानक मुद्दा उठाया कि एमए की एक किताब में लिखा है कि जो गाय का मांस खाता है उसे गोंड कहते हैं। बस इसी के साथ अचानक हंगामा शुरू हो गया। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि इस मामले को उच्चशिक्षा की बजट समीक्षा के समय उठा लीजिएगा लेकिन अजय सिंह नहीं माने। सदन को 3 बार अल्पअवधि के लिए और चौथी बार अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया गया। तत्समय कहा गया कि विधानसभा अध्यक्ष की बात मान ली जानी चाहिए थी। उच्च शिक्षा का मामला उच्च शिक्षा की समीक्षा के समय भी उठाया जा सकता था। आपातकाल जैसी स्थिति नहीं थी। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि आज कांग्रेस का होली मिलन है, इसलिए हंगामा करके सदन स्थगित कराया और कांग्रेसी होली खेलने चले गए। 

सीएजी और सिंहस्थ पर कोई आपत्ति क्यों नहीं
इसके बाद कांग्रेस के विधायक अचानक चुप हो गए। एक किताब में दर्ज अपमानजनक लाइन पर पर सदन स्थगित करा देने वाली कांग्रेस ने सीएजी रिपोर्ट और सिंहस्थ के बजट पर कोई बात ही नहीं की। 2016 में हुए सिंहस्थ मेले में कांग्रेस ने उस समय मीडिया के बीच चीख चीखकर घोटाले के आरोप लगाए थे। लिस्ट जारी की गई थी कि 1 रुपए का सामान कैसे 100 रुपए में खरीदा गया। कैसे चीजों का किराया उनकी कुल कीमत से ज्यादा अदा किया गया और जब सदन में मुद्दा उठाने की बारी आई तो....। सीएजी रिपोर्ट सदन के पटल पर आई। व्यापमं घोटाला और नियुक्तियों तक में घोटाला प्रमाणित हुआ परंतु किसी ने आसमान सिर पर नहीं उठाया। पोषाहार के मामले में तो विधायक ऐसे चुप रहे जैसे एक हिस्सा उनके पास भी पहुंचा हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि सीएजी और सिंहस्थ को बाईपास देने के लिए हंगामा किया गया हो। कहीं यह हंगामा फिक्स तो नहीं था। 

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